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श्री भगवानुवाच 
बहूनि मे व्यतीतानि जन्मानि तव चार्जुन। 
तान्यहं वेद सर्वाणि न त्वं वेत्थ परन्तप।।
अर्थ श्री भगवान ने कहा - हे परन्तप अर्जुन ! हम दोनों के ही इससे पहले कई जन्म हो चुके हैं , लेकिन मुझे वे सभी याद हैं जबकि अर्जुन तुम उन्हें भूल चुके हो व्याख्याश्री भगवान बोले - हे परंतप अर्जुन! मेरे और तेरे बहुत से जन्म हो चुके हैं। यहाँ अर्जुन को भगवान यह समझा रहे हैं कि तू शरीर की बात समझ रहा होगा कि आपका जन्म अभी का है। ऐसे तो तेरे व मेरे बहुत से जन्म हो चुके हैं। उन सबको तू नहीं जानता, मैं जानता हूँ। भगवान इस शरीर रूपी कृष्ण की बात नहीं कर रहे है। जो अर्जुन को दृश्य रूप में दिख रहा है। भगवान तो उस आत्मा (परम) की बात कर रहे हैं, जिसका कोई जन्म नहीं होता। जिसकी कभी मृत्यु नहीं होती। वह अपना स्वरूप होता है। ध्यान, समाधि, साधना से बहुत से संत पीछे के जन्मों को जान लेते हैं। पीछे के कुछ जन्मों को जान लेना एक सिद्धि होती है उसको जाना जा सकता है। ऐसे योगी कुछ सीमा तक ही पुराने जन्मों को जान सकते हैं सम्पूर्ण जन्मों को नहीं जान सकते। इसके विपरीत परम युक्त योगी कहलाते हैं। जो साधना किए बिना सिद्ध नित्य योगी है। जन्मों को जानने के लिए उन्हें वृति नहीं लगानी पड़ती। उन युक्त योगी में अपने आप सम्पूर्ण ब्रह्म का ज्ञान सदा बना रहता है। भगवान आत्मा की बात कर रहे हैं आत्मा के तल तक कोई स्थिर हो जाता है वह योगी परम के साथ युक्त माना जाता है। फिर उस योगी को आप शरीर समझे तो यह आपकी मूर्खता है। बहुत से लोग कहते हैं कृष्ण तो एक शरीर की बात कर रहे हैं। श्री कृष्ण ने पूरी गीता में जो ज्ञान दिया है। वह शरीर का नहीं आत्मा का है, कृष्ण अब भी अर्जुन को बता रहे हैं कि जब सूर्य नहीं था मैं तब भी था। उसमें प्रकाश नहीं था। वह काला ग्रह था तब भी मैं था। परमात्मा ने जब इस ब्रह्माण्ड को बनाया था तब सूर्य को यह योग कहा, फिर परमात्मा ने काले सूर्य में अपना प्रकाश जगमगा दिया। वह आत्मा सबके शरीरों में अब भी है पहले भी थी और आत्मा संसार का विनाश होने के बाद भी नित्य अचल रूप में हर जगह स्थित रहती है। श्री कृष्ण ने आत्मा की बात की है और जब आपको ईश्वर का साक्षात्कार (आत्म बोध) हो जाता है तब आप भी इस शरीर की बात नहीं करोगे। आप भी अपने को आत्मा में देखोगे इसलिए भगवान कह रहे हैं तू सबको नहीं जानता मैं जानता हूँ।
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अपने आप को गीता परमरहस्यम् की गहन शिक्षाओं में डुबो दें, यह एक कालातीत मार्गदर्शक है जो आत्म-खोज और आंतरिक विकास का मार्ग प्रशस्त करता है।

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