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न हि ज्ञानेन सदृशं पवित्रमिह विद्यते। 
तत्स्वयं योगसंसिद्धः कालेनात्मनि विन्दति।।
अर्थ इस मानवलोक में ज्ञान से पवित्र अन्य कोई साधन नहीं जिसका योग सिद्ध हो गया है वह योगी अवश्य ही स्वयं उस तत्वज्ञान को आत्मसात कर लेता है व्याख्यागीता अध्याय 4 का श्लोक 38 पापों से पवित्र होने के लिए लोग पता नहीं कहाँ-कहाँ तीर्थ स्नान करते हैं और भी पूजा पाठ हवन मंत्र उच्चारण करते हैं लेकिन भगवान श्री कृष्ण कहते हैं अर्जुन को, कि इस संसार में  ज्ञान के समान पवित्र करने वाला निःसंदेह कुछ भी नहीं। लोग मंत्रों का सारे दिन उच्चारण करते हैं। उनको ज्ञान नहीं होता जो मंत्र में शब्द बोले जा रहे हैं। उसका मतलब क्या है। वह सिर्फ अपने बताये हुए गुरुओं की बात को मानता है। जब तक ज्ञान नहीं होगा तब तक शब्दों का कोई मतलब नहीं शब्द सिर्फ अपने भीतर ज्ञान के भाव को उत्पन्न करने के लिए बोले जाते हैं। जब शब्द बोले जाते हैं तो उन शब्दों से बातों को समझते हैं। जैसे आप एक पौधे या पेड़ का पत्ता तोड़े, फिर उस पत्ते का रंग क्या है। दूसरे से पूछो तो वह कहेगा इसका रंग हरा (ग्रीन) है। अब आप पूछो उससे की इसमें हरा कलर कहाँ है। वह कहेगा सारा ही हरा रंग है। अब उसको किसने बताया की हरा रंग है। उसने बचपन से सीखा था कि यह हरा है यह पीला या लाल उसको उसके माँ-बाप परिवार, स्कूल टीचर ने बताया था, उनके माँ बाप अगर शुरूआत में इसको हरा ना बता के पीला बताते तो आज हरे रंग को सब पीला ही कहते। आप बात के भाव को पकड़ें शब्द सिर्फ हमें चीज को समझने के लिए काम आते हैं। बाकी खेल शब्दों का नहीं अपने भीतर भावों का है। आप शब्द के मंत्र बोल रहे हैं। लेकिन आप शब्द का मतलब कुछ और समझ रहे हैं, तो आपको जो मिलेगा वह शब्द के हिसाब से नहीं अपने भीतर के भावों के हिसाब से मिलेगा और यह भाव अपने भीतर है शब्दों में नहीं। शब्द तो सिर्फ भाव को समझने के लिए इशारा है और भाव भीतर से प्रकट होते हैं। जब योगी परम भाव में एकीभाव हो जाता है। वह भीतर के ज्ञान से पवित्र हो जाता है। ज्ञान के समान इस संसार में पवित्र करने वाला कुछ भी नहीं और ज्ञान प्राप्त होता है योग में स्थित होने से। वह कर्मयोगी जिसका योग भली भांति सिद्ध हो गया है (अर्थात उस व्यक्ति को संसार की कोई आसक्तियां नहीं और सम साधना ध्यान योग में स्थित हो गया है) वह योगी खुद ही उस तत्वज्ञान को अपने आप में (अपने आप का तात्पर्य अपनी आत्मा में) अवश्य ही पा लेता है।
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अपने आप को गीता परमरहस्यम् की गहन शिक्षाओं में डुबो दें, यह एक कालातीत मार्गदर्शक है जो आत्म-खोज और आंतरिक विकास का मार्ग प्रशस्त करता है।

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