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अपि चेदसि पापेभ्यः सर्वेभ्यः पापकृत्तमः। 
सर्वं ज्ञानप्लवेनैव वृजिनं सन्तरिष्यसि।।
अर्थ ज्ञान रुपी नौका के द्वारा अगर तू समस्त पापियों से भी अधिक पापी होगा तो भी पाप रूपी समंदर में से आसानी से पार हो जाएगा। व्याख्यागीता अध्याय 4 का श्लोक 36 भगवान कहते हैं कि अगर तू सम्पूर्ण पापियों में भी सबसे ज्यादा पाप करने वाला रहा हो चाहे, फिर भी तत्वज्ञान से तू सम्पूर्ण पापों से तर जाएगा। यदि कहीं हजारों वर्षों से घना अन्धेरा छाया हो और वहाँ दीया (प्रकाश) जला दिया जाये तो उस अंधेरे को दूर होने में हजारों वर्ष नहीं लगेंगे। दीपक जलते ही तत्काल अंधेरा मिट जायेगा। इसी तरह आत्म बोध होते ही पहले किये गये सम्पूर्ण पाप तत्काल मिट जाते हैं। अगर कोई पापी दृढ निश्चय करके परम आत्मा तत्व का ज्ञान प्राप्त करता है तो वह भी सम्पूर्ण पाप समुन्द्र को पार कर जाता है। पाप समुन्द्र को पार करने के लिए तत्वज्ञान रूपी नौका चाहिए। अगर ज्ञान रूपी नौका नहीं है तो पापी तो क्या पुण्य करने वाले भी इस भवसागर को पार नहीं कर सकते। ज्ञान ही पापों का नाश करता है।
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अपने आप को गीता परमरहस्यम् की गहन शिक्षाओं में डुबो दें, यह एक कालातीत मार्गदर्शक है जो आत्म-खोज और आंतरिक विकास का मार्ग प्रशस्त करता है।

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