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यज्ज्ञात्वा न पुनर्मोहमेवं यास्यसि पाण्डव। 
येन भूतान्यशेषेण द्रक्ष्यस्यात्मन्यथो मयि।।
अर्थ उस तत्त्वज्ञान को जानने के बाद तू मोह से मुक्त होगा, हे अर्जुन! और उस तत्त्वज्ञान से तू सभी प्राणियों को निःशेष भाव से पहले अपने में और उसके बाद मुझ परमात्मा में देखेगा व्याख्यागीता अध्याय 4 का श्लोक 35 तत्वज्ञान को जानकर फिर तू इस प्रकार मोह को नहीं तत्वज्ञान को ही प्राप्त होगा। (मोह, क्रोध, आसक्ति इत्यादि से परे हो पायेगा) हे पाण्डव! जिस ज्ञान के द्वारा (तत्वज्ञान द्वारा) तू सम्पूर्ण भूतों को (भूत अर्थात सब प्राणी) निःशेष भाव से (निःशेष भाव अर्थात जिसको जानने के बाद जानने लायक कुछ शेष नहीं रहता) पहले अपने में फिर मुझमें देखेगा। अर्थात योग में  युक्त आत्मा वाला तथा सम भाव से देखने वाला योगी आत्मा को सम्पूर्ण में स्थिर देखता है और सम्पूर्ण भूतों को आत्मा में कल्पित देखता है। आत्मा में  ही सम्पूर्ण ब्रह्म रचा हुआ है योगी पहले अपने में आत्मा को देखता है फिर आत्मा में सम्पूर्ण ब्रह्म को देखता है। मनुष्य को इसका अनुभव तत्वज्ञान मिलने पर आत्म बोध से होता है।
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अपने आप को गीता परमरहस्यम् की गहन शिक्षाओं में डुबो दें, यह एक कालातीत मार्गदर्शक है जो आत्म-खोज और आंतरिक विकास का मार्ग प्रशस्त करता है।

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