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श्रेयान्द्रव्यमयाद्यज्ञाज्ज्ञानयज्ञः परन्तप। 
सर्वं कर्माखिलं पार्थ ज्ञाने परिसमाप्यते।।
अर्थ हे परन्तप अर्जुन! ज्ञान यज्ञ किसी भी प्रकार के द्रव्यमय यज्ञ से श्रेठतम है अतः सभी कर्म और पदार्थ तत्वज्ञान में ही विलीन है व्याख्यागीता अध्याय 4 का श्लोक 33 द्रव्यमय यज्ञ अर्थात जो व्रत, तप, हवन, पूजा पाठ के यज्ञ हैं, इनसे ज्ञान यज्ञ श्रेष्ठ है। सम्पूर्ण कर्म और पदार्थ तत्वज्ञान में विलीन हो जाते हैं।  द्रव्यमय यज्ञ से ज्ञान यज्ञ श्रेष्ठ है, ज्ञान यज्ञ में सम्पूर्ण क्रियाओं और पदार्थों से वैराग्य हो जाता है अर्थात तत्वज्ञान होने पर कुछ भी करना, जानना और पाना शेष नहीं रहता। क्योंकि एक परमात्मा के सिवाय अन्य सत्ता ही नहीं रहती।
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अपने आप को गीता परमरहस्यम् की गहन शिक्षाओं में डुबो दें, यह एक कालातीत मार्गदर्शक है जो आत्म-खोज और आंतरिक विकास का मार्ग प्रशस्त करता है।

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