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स एवायं मया तेऽद्य योगः प्रोक्तः पुरातनः। 
भक्तोऽसि मे सखा चेति रहस्यं ह्येतदुत्तमम्।
अर्थ भगवान ने अर्जुन से कहा कि तुम मेरे प्रिय सखा हो , इसलिए उसने उसे वही पुरातन योग बताया है, क्योंकि यह एक उत्तम रहस्य है व्याख्यागीता अध्याय 4 का श्लोक 3 पहले यह योग राजर्षियों को बताया जाता था जो कर्म सन्यासी थे। और अब यह योग अर्जुन को बताया जा रहा है। जो भगवान का भक्त और सखा दोनों है। वैसे तो हर मनुष्य यहाँ अर्जुन है, सबका मन अर्जुन की तरह मोह में मचलता रहता है। लेकिन जो मनुष्य परम प्रभु का भक्त बन जाता है, वह प्रभु का प्रिय होता है। उसको फिर भगवान यह योग का रहस्य बताते हैं। श्री भगवान कहते हैं अर्जुन को कि तू मेरा भगत, प्रिय, सखा है।  इसलिए वही पुरातन (पुराना) योग मैंने तुमको कहा यह योग बड़ा ही उत्तम रहस्य है (आप सभी प्रेमी साधकों के पिछले जन्मों के पुण्य कर्म है तभी यह योग आपको परमात्मा गीता परम रहस्यम् के माध्यम से समझा रहे हैं क्योंकि आप भी भगवान के भक्त व प्रिय सखा हैं) यह योग बिना प्रभु इच्छा वाले को नहीं बताना चाहिए। क्योंकि यह परमात्मा की बनाई लीला का रहस्य है। अज्ञानी लोग इस रहस्य को अच्छे से नहीं समझ पाते। वह पाप करके भी योग का नाम देंगे इसलिए प्रभु में जिसकी श्रद्धा हो उसे ही इस योग को बताना चाहिए।
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अपने आप को गीता परमरहस्यम् की गहन शिक्षाओं में डुबो दें, यह एक कालातीत मार्गदर्शक है जो आत्म-खोज और आंतरिक विकास का मार्ग प्रशस्त करता है।

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