श्रोत्रादीनीन्द्रियाण्यन्ये संयमाग्निषु जुह्वति।
शब्दादीन्विषयानन्य इन्द्रियाग्निषु जुह्वति।।
शब्दादीन्विषयानन्य इन्द्रियाग्निषु जुह्वति।।
अर्थ कुछ योगी लोग श्रवणादि इन्द्रियों का संयम रूप अग्नि में हवन करते हैं, और दूसरे योगी लोग शब्दादि विषयों का इन्द्रिय रूप अग्नि में हवन करते हैं व्याख्यागीता अध्याय 4 का श्लोक 26
पहले जो प्रकृति से प्रकृति को हवन करते हैं। ये देवताओं की पूजा पाठ करते हैं उनके लिए स्वर्ग से उत्तम कुछ नहीं, ऐसे मनुष्य विषयों का रंग, रूप, गंध, शब्द, स्पर्श यह प्रकृति माया है। इन विषयों के लालच में अपनी इन्द्रियों से इनका भोग करते है। यह लोग इन्द्रियों को विषयों में हवन करते है। अर्थात प्रकृति का भोग करते हैं।
दूसरे कर्म योगी पाँचों इन्द्रियों का संयम रूप अग्नि अर्थात आसक्ति रहित होकर इन्द्रियों के भोग को योग द्वारा संयम, अग्नि में हवन किया करते हैं संयम अर्थात स्थिरता, धर्म, सन्तोष।