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कर्मण्यकर्म यः पश्येदकर्मणि च कर्म यः। 
स बुद्धिमान् मनुष्येषु स युक्तः कृत्स्नकर्मकृत्।।
अर्थ जो मनुष्य कर्म में अकर्म देखता है और जो अकर्म में कर्म देखता है। वह मनुष्यों में बुद्धिमान है। वह योगी है और सम्पूर्ण कर्मों को करने वाला है। व्याख्यागीता अध्याय 4 का श्लोक 18 जो मनुष्य कर्म में अकर्म देखता है उदाहरण मान लेते हैं कि कोई पानी में डूब रहा है और आप वहां से गुजर रहे हो। आपने देखा कोई नदी में डूब रहा है आप उस व्यक्ति को पानी से बाहर निकाल लेते हो और उसको बचाकर आप आगे निकल जाते है अपने पथ पर। आपको पता है इसको मैंने नहीं बचाया इसको बचाने के लिए परम प्रभु इस वक्त आपको इस जगह ले आए थे, सब प्रभु की लीला है कब किसको किसके माध्यम से बचाना है, आप ज्ञानी हो तो उसको बचाना आपका कर्मयोग था आपने निभा दिया बस और कुछ नहीं, यह कर्म में अकर्म देखना होता है। इसके विपरीत अगर कोई संसार की वाह-वाही में पड़ा हुआ। राजसी व्यक्ति है तो वह क्या करेगा, वह व्यक्ति पानी में डूबते को बचा कर वहाँ तब तक खड़ा रहेगा, जब तक वह दस बार धन्यवाद ना बोल दे। इतने से भी काम नहीं चलेगा वह भीड़ इकट्ठी करेगा, सबको बताएगा कि मैंने बचाया इसको और तो और वह यह तक चाहेगा कि इतना बड़ा काम किया है मैंने कल पेपर में फोटो के साथ खबर तो छपनी चाहिए। इसमें इसने कुछ नहीं किया था प्रभु है सबको मरने व बचाने वाला। यह प्रभु का कर्म था व्यक्ति तो निमित मात्र था। यह व्यक्ति तो अकर्म में भी कर्म देख रहा है। ऐसे ही कुछ लोगों की आदत होती है कि कोई और उस कर्म को करता है लेकिन उस कर्म को करने से जो लाभ होता है तब यूं ही फेंकता रहता है कि इस कर्म को करने की राय मैंने दी थी। तब जाकर यह काम हुआ है। यानि बिना किये ही उस काम का श्रेय (क्रेडिट) खुद चाहता है। जो मनुष्य कर्म में अकर्म देखता है और जो अकर्म में कर्म देखता है इस बात को और अच्छे से जाने ले जो साधक सम्पूर्ण कर्म बिना इच्छा के करता है अपने आप को प्रकृति शरीर ना मान कर आत्मा मानता है और आत्मा में ही सम्पूर्ण प्रकृति को देखता है। वह योगी कर्म करता है वह सर्वहित के लिए भगवान का कार्य समझ कर उस मार्ग पर चलता है, उसमें कर्त्तापन का अभिमान नहीं होता। और वह योगी अकर्म में कर्म देखता है इस बात को भी अच्छे से समझे। बहुत से व्यक्ति हर काम को करना ही कर्म मानते हैं। कभी-कभी कर्म ना करके भी बहुत बड़ा कर्म होता है। बुद्धिमान मनुष्य वही है जो कार्य को करने से पहले एक्शन के रियक्शन को देख ले। कई बार व्यक्ति कर्म करने का गलत निर्णय ले लेता है। उससे खुद को ही नहीं बहुत लोगों का नुकसान होता है। ऐसे बहुत से कर्म हैं जिनको करने से लोगों को दुख तकलीफ होती है। उन अकर्मों को ना करके भी मानव जाति के लिए बहुत बड़ा कर्म हो गया। वह मनुष्य में बुद्धिमान व्यक्ति है और ऐसा मनुष्य संसार के सभी कर्मों को करने वाला है। जो कर्मों में कामना ना रखता है। कौन-सा कर्म करना चाहिए और कौन-सा नहीं करना चाहिए ऐसे कर्मों की गति को जानने वाला मनुष्य योगी (सम साधक) है।
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अपने आप को गीता परमरहस्यम् की गहन शिक्षाओं में डुबो दें, यह एक कालातीत मार्गदर्शक है जो आत्म-खोज और आंतरिक विकास का मार्ग प्रशस्त करता है।

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