Logo
एवं ज्ञात्वा कृतं कर्म पूर्वैरपि मुमुक्षुभिः। 
कुरु कर्मैव तस्मात्त्वं पूर्वैः पूर्वतरं कृतम्।।
अर्थ प्राचीन काल में भी मुक्ति की इच्छा रखने वाले पूर्वजों ने भी कर्म किये हैं इसलिए तू उन मुमुक्षुओं के पदचिन्हों पर चलते हुए कर्म कर व्याख्यागीता अध्याय 4 का श्लोक 15 अर्जुन मुमुक्षु थे अर्थात अपना कल्याण चाहते थे। इसलिए भगवान कृष्ण अर्जुन को पूर्वकाल के मुमुक्षु मनुष्यों का उदाहरण देते हैं, (जनक आदि) उन्होंने भी अपने-अपने कर्त्तव्य कर्मों का पालन करके कल्याण की प्राप्ति की है। इसलिए तुम्हें भी उनकी तरह अपने कर्मों का पालन करना चाहिए। कर्म योग का ज्ञान है, कर्म करते हुए योग में सम रहना और योग में सम रहते हुए कर्म करना। कर्म संसार सेवा के लिए, योग अपने कल्याण के लिए होता है। पीछे के दो श्लोक में प्रभु ने बताया कर्त्ता अभिमान से रहित होकर और फल इच्छा रहित होकर सृष्टि रचना कर्म करने के कारण भी वे कर्म मुझे नहीं बांधते। जब फल की इच्छा ही नहीं तो बिना इच्छा कर्म लिप्त नहीं करते। परमात्मा भी कर्मों में लिप्त नहीं होते आप भी कर्मों के फल से लिप्त ना होना जब कर्मों से लिप्त नहीं होंगे तब आप आत्मा में एकीभाव स्थिर रहोगे। पहले के समय में मुमुक्षु ने भी इस प्रकार योग को जानकर ही कर्म किये थे। इसलिए तू भी पूर्वजों द्वारा सदा से किये जाने वाले कर्म को ही कर।
logo

अपने आप को गीता परमरहस्यम् की गहन शिक्षाओं में डुबो दें, यह एक कालातीत मार्गदर्शक है जो आत्म-खोज और आंतरिक विकास का मार्ग प्रशस्त करता है।

Follow us on

अधिक जानकारी या निस्वार्थ योगदान के लिए आज ही संपर्क करे।

[email protected] [email protected]