Logo
ये यथा मां प्रपद्यन्ते तांस्तथैव भजाम्यहम्। 
मम वर्त्मानुवर्तन्ते मनुष्याः पार्थ सर्वशः।।

काङ्क्षन्तः कर्मणां सिद्धिं यजन्त इह देवताः। 
क्षिप्रं हि मानुषे लोके सिद्धिर्भवति कर्मजा।।
अर्थ हे पृथानन्दन! जो भक्त जिस भाव से मेरी शरण लेते हैं, मैं उन्हें उसी प्रकार का सहारा देता हूँ, क्योंकि सभी मनुष्य जाने अनजाने मेरे ही धर्म का अनुसरण करते हैं।सकाम कर्मों की सिद्धि चाहने वाले मनुष्य देवताओं की पूजा करते हैं, क्योंकि उन्हें इस मनुष्य लोक में जल्दी सिद्धि मिल जाती है व्याख्यागीता अध्याय 4 का श्लोक 11-12 इस पृथ्वी के सभी मनुष्य किसी ना किसी धर्म से जुड़े हुए हैं। यह सभी प्राणी अपने अपने तरीकों से प्रभु शरण में है जैसे कोई भगवान की मूर्ति पूजा करते हैं, और कुछ मन्दिर में, कुछ गुरूद्वारे में, कुछ चर्च में, कुछ मस्जिद में, कोई निराकारी हैं। तो कुछ सगुण रूप में भजते हैं। परम प्रभु की जिस प्रकार भक्त शरण लेते हैं परम उन्हें उसी प्रकार आश्रय देते हैं आप भगवान को जैसे भी मानोगे, भगवान आपको उसी रूप में नजर आएंगे। सब प्राणी भगवान के बनाए हुए मार्ग पर ही चलते हैं। इस पृथ्वी लोक में कर्मों के फल को चाहने वाले लोग, देवताओं को पूजते हैं। देवता पूजन से खुश होकर व्यक्ति को फल जल्दी दे देते हैं।
logo

अपने आप को गीता परमरहस्यम् की गहन शिक्षाओं में डुबो दें, यह एक कालातीत मार्गदर्शक है जो आत्म-खोज और आंतरिक विकास का मार्ग प्रशस्त करता है।

Follow us on

अधिक जानकारी या निस्वार्थ योगदान के लिए आज ही संपर्क करे।

[email protected] [email protected]