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कर्मेन्द्रियाणि संयम्य य आस्ते मनसा स्मरन्।
इन्द्रियार्थान्विमूढात्मा मिथ्याचारः स उच्यते।।
अर्थ जो अपने कर्मेंद्रियों का हठपूर्वक दमन करके मन से इन्द्रियों के विषयों के बारे में मनन करता है,इन्द्रियों के विषयों में मोहित है, वह मिथ्याचारी कहा जाता है व्याख्यागीता अध्याय 3 का श्लोक 6 जो कर्म इन्द्रियों को रोककर ज्ञानइन्द्रियां व कर्मइन्द्रियां यही होती है। जैसे आँख,कान,नाक,जीभ,त्वचा यही कर्म इन्द्रियां होती है और यही ज्ञान इन्द्रियां जैसे आप आँखों से देख रहे हो वह देखना उस इन्द्री का कर्म हुआ और उस देखने से जो ज्ञान मिल रहा है वह ज्ञान इन्द्री हुई जैसे जीभ से कोई चीज खा या पी रहे हैं तो वह कर्म हुआ और उसे खाने पीने में जो रस प्राप्त हो रहा है वह ज्ञान है जैसे आपने कोई मिठाई खाई उस मिठाई का स्वाद मन तक ज्ञानइन्द्री पहुंचाती है जैसे मिठाई खाने के एक साल बाद भी उस मिठाई का जिक्र होता है तो मुंह में पानी आ जाता है।  वह स्वाद मन को किसने बताया ज्ञानइन्द्रियों ने बाकी जीभ दांत मुंह ने तो अपना कर्म किया इसलिए यह कर्म इन्द्री हुई। ज्ञान इन्द्री ने मन में रस भर दिया एक उदाहरण और जैसे कान (श्रोत्र) ने शब्द सुना तो श्रोत्र इन्द्री ने कर्म किया,उस शब्द को सुनने से जो समझ हुई वह भीतर ज्ञान इन्द्री ने कार्य किया वैसे तो मनुष्य का सम्पूर्ण शरीर ही कर्म इन्द्रियां है। जैसे त्वचा का आनंद स्पर्श से होता है। और त्वचा पूरे शरीर पर है। इन कर्म इन्द्रियों को यानि पूरे शरीर को हठ पूर्वक रोक कर मन से विषयों का मनन करता है। वह मूढ बुद्धिवाला मनुष्य मिथ्याचारी (दम्भी) कहा जाता है।  जैसे बहुत से लोग किसी धर्म या आश्रम से जुड़कर बहुत से नियमों में बंध जाते है जैसे किसी आश्रम में कोई व्यक्ति जुड़ा और उसको नाम उच्चारण करने के लिए शब्द दे दिये जिनका वह उच्चारण करता है उस शब्द का मतलब उसको पता ही नहीं। यह ज्ञान शब्दों का नहीं भावों का है। भाव कुछ और है शब्द कुछ और है तो उस व्यक्ति को मुक्ति नहीं मिलेगी। चलो शब्द तो दे दिये जिनका मतलब का पता उनको शायद कभी ना चल पाये लेकिन कुछ नियम भी होते हैं फिर उन नियम पर भी चलना है जैसे शराब नहीं पीना,पराई स्त्री को नहीं देखना, फिर वह व्यक्ति धर्म के दबाव में आकर ऊपर से इन्द्रियों को हठ पूर्वक रोक देता है और मन से उनका चिन्तन यानि याद करता है। मेरा एक जानकार किसी आश्रम से जुड़ा हुआ था। उनके आश्रम का यह नियम था कि जो भी नाम लेगा उसको पराई स्त्री को नहीं देखना या सम्बन्ध नहीं बनाना वह कई बार टी.वी. में फिल्म या गाने देखता तो मरने को हो जाता। मैंने कहा अगर मन बस में नहीं है तो क्यों अपने आपको धोखा दे रहा है। नाम लेने की वजह से उसने ऊपर से इन्द्रियों को हठ पूर्वक रोक रखा था। लेकिन किसी औरत का जिक्र करने पर बातों में रस उसी नामधारी को सबसे ज्यादा आता था। यानि सभी लोग ऐसी बातें करके उसका मजाक उड़ाते थे। ऐसे ही ज्यादातर लोग अज्ञान की वजह से दम्भी,मूढी बनकर ज्ञान का चोला ओढ़े घूमते मिल जाएंगे बाजार में। जो इच्छा अनकॉन्शिस में दब गई। वह इच्छा शरीर मरने के बाद मनुष्य को दोबारा जन्म दिला देती है। जब तक भीतर इच्छा है तब तक संसार की दौड़ में वह व्यक्ति माना जाएगा। ना भोगना है ना भोगना है भोग के प्रति जागना है जो जाग गया उसके बाद वह योगी है। योगी तो भोग कर भी त्याग भाव रखते हैं। अज्ञानी ना भोग कर भी भोगता है यानि त्याग कर भी मन से नहीं त्याग पाता वह दम्भी है।
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अपने आप को गीता परमरहस्यम् की गहन शिक्षाओं में डुबो दें, यह एक कालातीत मार्गदर्शक है जो आत्म-खोज और आंतरिक विकास का मार्ग प्रशस्त करता है।

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