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इन्द्रियाणि पराण्याहुरिन्द्रियेभ्यः परं मनः।
मनसस्तु परा बुद्धिर्यो बुद्धेः परतस्तु सः।।

एवं बुद्धेः परं बुद्ध्वा संस्तभ्यात्मानमात्मना।
जहि शत्रुं महाबाहो कामरूपं दुरासदम्।।
अर्थ इन्द्रियों को स्थूल शरीर से पर (पार) कहते हैं। इन्द्रियों से पर मन है। मन से भी पर बुद्धि है और जो बुद्धि से भी पर है, वह काम है। इस तरह बुद्धि से पर काम को जानकर अपनी आत्मा द्वारा अपने-आप को वश में करके हे महाबाहो! तू इस कामरूप दुर्जय शत्रु को मार डाल। व्याख्यागीता अध्याय 3 का श्लोक 42-43 इन्द्रियों के पार मन है, मन के पार बुद्धि है, और बुद्धि के पार वह है जिसे हम आत्मा कहें, जो जितना पार होता है यह ध्यान रहे पहले वाले से ज्यादा शक्तिशाली होता है। जैसे एक वृक्ष है,उसके पत्ते हमें दिखाई पड़ते हैं, पत्तों के पार शाखाएं है वह शाखाएं पत्तों से ज्यादा शक्तिशाली होती हैं। आप पत्तों को काट दें, नए पत्ते शाखाओं में तत्काल आ जाएंगे, आप शाखा को काट दें तो नई शाखा आनी बहुत मुश्किल हो जाएगी। शाखा पत्तों से शक्तिशाली है,फिर शाखा से और नीचे चलें तो वृक्ष का तना है,जैसे पत्ते बिना शाखा के नहीं हो सकते वैसे ही शाखा भी बिना पींड (तना) के नहीं हो सकती और पींड के नीचे चलें तो जड़े हैं, जड़ बगैर पींड नहीं बन सकता लेकिन पींड बगैर भी जड़े नए अंकुर निकाल सकती हैं,जो जितना पार है वह उतना शक्तिशाली है,जो जितना आगे है वह उतना कमजोर है, जो पीछे है वह उतना ही शक्तिशाली है। असल में शक्तिशाली को पीछे रहना पड़ता है,क्योंकि वह उससे संभालता है, कृष्ण कहते हैं इन्द्रियों के पीछे मन है, मन इन्द्रियों से शक्तिशाली है, मन चाहे तो किसी भी इन्द्रिय को तत्काल रोक सकता है। फिर भगवान कहते हैं,मन के पार बुद्धि है क्योंकि जहां मन नहीं रहता वहां बुद्धि रहती है,जैसे रात को आप गहरी निद्रा में खो जाते हैं,सुबह उठकर आप कहते हैं कि रात में  नींद का बड़ा आनंद रहा,बड़ी गहरी नींद आई, ना स्वप्न आए ना विचार उठे, यह किसको पता चला फिर कि आप गहरी नींद में रहे बड़ा आनंद आया ?वह बुद्धि ने जाना, बुद्धि मन के पार है। कृष्ण कहते हैं इन्द्रियां माने मन की,मन माने बुद्धि की, बुद्धि परमात्मा के समर्पित हो तो बुद्धि माने आत्मा की। आत्मा परम उर्जा है, इन्द्रियों को वश में कर मन से, मन को वश में कर बुद्धि से और बुद्धि की बागडोर दे दे परमात्मा के हाथ में,फिर काम रूप शत्रु से तू बाहर हो जाएगा। इन्द्रियां आदत के अनुसार चलती हैं, जैसे आपको नहाना है तो आप अपने आप उठेंगे, पैर पलंग से नीचे रखेंगे और बाथरूम के भीतर जाएंगे नहा कर वापिस आ जाएंगे। मन को पता ही नहीं चलता कि क्या कर रही है इन्द्रियां, ऐसे ही आप खाना खाते हैं, इन्द्रियां अपने आप रोटी तोड़ेंगी, मुंह में डालेंगी, दांत अपने आप चलते रहेंगे, इन्द्रियां आदत के अनुसार चलती रहती हैं। आप होशपूर्वक करें कि मैं यह क्या कर रहा हूँ, आप होशपूर्वक चलें कि यह कदम उठा, अब यह कदम उठा, अब मैं नहा रहा हूँ, अब मैं खा रहा हूँ और आप पाओगे कि इन्द्रियों की शक्ति मन से कम होती है,फिर मन की शक्ति इन्द्रियों पर चढ़ती चली जाएगी। फिर ऐसा ही मन के साथ बुद्धि के द्वारा करें, मन कुछ भी करता रहता है, सच तो यह है आप करने देते हो, कभी बुद्धि को बीच में लाते ही नहीं, जब तक मन उलझ नहीं जाए। एक आदमी बैठा है अपनी कार में,वह ना जाने क्या-क्या सोचता रहता है, कभी सोचते-सोचते मंत्री बन जाता है, कभी दूल्हा बन जाता है कभी कुछ, कभी कुछ,गाड़ी चल रही है, गियर अपने आप बदले जा रहे हैं, स्टीयरिंग हाथ में लिए सिगरेट मुँह में दबी है आप चले जा रहे हैं,एकदम एक्सीडेंट होने की हालत आ जाती है तब मन एकदम बन्द हो जाता है और अचानक बुद्धि आ जाती है, यानि मन से पार बुद्धि है और बुद्धि से पार है आत्मा और आत्मा द्वारा अपने आप को वश में कर लेता है, वह कामना से पार हो जाता है अर्थात् वह परम को प्राप्त हो जाता है। ‘‘ जय श्री कृष्णा ’’
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अपने आप को गीता परमरहस्यम् की गहन शिक्षाओं में डुबो दें, यह एक कालातीत मार्गदर्शक है जो आत्म-खोज और आंतरिक विकास का मार्ग प्रशस्त करता है।

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