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तस्मात्त्वमिन्द्रियाण्यादौ नियम्य भरतर्षभ।
पाप्मानं प्रजहि ह्येनं ज्ञानविज्ञाननाशनम्।।
अर्थ इसलिए हे भरतवंशियों में श्रेष्ठ अर्जुन ! तू सबसे पहले इन्द्रियों को वश नियंत्रण में करके इस ज्ञान और तत्त्वज्ञान का नाश करने वाले काम को बलपूर्वक मार डाल व्याख्यागीता अध्याय 3 का श्लोक 41 भगवान श्री कृष्ण बताते हैं कि हे भरतवंशियों में श्रेष्ठ अर्जुन तू सबसे पहले अपनी इन्द्रियों को वश में करके इस काम को जो यह काम है यह ज्ञान$विज्ञान=तत्वज्ञान (आत्म साक्षात्कार) को करने में शत्रु है। इस महान पापी काम का बलपूर्वक वध कर डालो। कामना सम्पूर्ण पापों की जड़ है। कामना उत्पन्न होने से पाप होने की सम्भावना बनी रहती है। कामना में  आगे चलकर मनुष्य का विवेक ढककर उसे अन्धा बना देती है। ऐसे मनुष्य को पाप पुण्य का ज्ञान ही नहीं रहता। इसलिए श्री कृष्ण कामना को महापापी बताकर उसे अवश्य ही मार डालने की आज्ञा देते हैं।
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अपने आप को गीता परमरहस्यम् की गहन शिक्षाओं में डुबो दें, यह एक कालातीत मार्गदर्शक है जो आत्म-खोज और आंतरिक विकास का मार्ग प्रशस्त करता है।

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