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श्री भगवानुवाच
काम एष क्रोध एष रजोगुणसमुद्भवः।
महाशनो महापाप्मा विद्ध्येनमिह वैरिणम्।।
अर्थ श्री भगवान ने कहा कि कामना रजोगुण से उत्पन्न होती है और यह पाप का कारण है। काम में असफलता क्रोध में परिवर्तित होती है और यह अंदर ही अंदर व्यक्ति को खोखला बनाती है औरऐसे व्यक्ति महापापी होता है। इसलिए, हमें इसे ही शत्रु जानना चाहिए व्याख्यागीता अध्याय 3 का श्लोक 37 प्रकृति के तीन गुण सत्वगुण, रजोगुण,तमोगुण। रजोगुण से उत्पन्न यह काम ही महापापी है। काम अर्थात मेरी मनचाही हो, धन की इच्छा,सुख की इच्छा, आसक्ति आदि संसार के नाशवान पदार्थों की इच्छा ही कामना कहलाती है। कामना पूर्ति होने पर लोभ उत्पन्न होता है और कामना में  बाधा पहुंचने पर क्रोध उत्पन्न होता है। पाप कर्म कहीं तो काम के वश में होकर,कहीं क्रोध के वश में होकर किया जाता है। कामना सब पापों,दुखों की जड़ है, कामना वाले व्यक्तियों को जागृत में तो क्या स्वप्न में भी सुख नहीं मिलता। भगवान कहते हैं कि यह काम ही महापापी है इस विषय में तू इसको वैरी (शत्रु) जान।
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अपने आप को गीता परमरहस्यम् की गहन शिक्षाओं में डुबो दें, यह एक कालातीत मार्गदर्शक है जो आत्म-खोज और आंतरिक विकास का मार्ग प्रशस्त करता है।

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