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अर्जुन उवाच
अथ केन प्रयुक्तोऽयं पापं चरति पूरुषः।
अनिच्छन्नपि वार्ष्णेय बलादिव नियोजितः।।
अर्थ अर्जुन कहते हैं किहे वार्ष्णेय भगवान!(वृष्णिवंशी) मनुष्य कभी-कभी न चाहते हुए भी पाप करने के लिए किस दबाव से प्रेरित होके करता है है, भले ही वह उसे नहीं करना चाहता हो व्याख्यागीता अध्याय 3 का श्लोक 36 विचारशील मनुष्य पाप करना तो नहीं चाहता। क्योंकि उसको पता होता है कि पाप का परिणाम दुख होता है। पर भीतर भोग की इच्छा होने से वह करने योग्य कर्म नहीं करता और न करने योग्य कर्म कर बैठता है। तात्पर्य यह है कि मनुष्य पापों को जानता हुआ भी उनसे सदा दूर रहना चाहता है। फिर भी वह पाप में ऐसे लग जाता है। जैसे कोई उसे पाप में जबरदस्ती लगा रहा हो इसलिए अर्जुन कहते हैं ऐसा मालूम होता है कि पाप में लगाने वाला कोई बलवान कारण है। आप मेरे इस प्रश्न का उत्तर दें कि यह मनुष्य किससे प्रेरित होकर पाप का आचरण करता है। अब आगे के श्लोक में भगवान उत्तर देते हैं अर्जुन को।
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अपने आप को गीता परमरहस्यम् की गहन शिक्षाओं में डुबो दें, यह एक कालातीत मार्गदर्शक है जो आत्म-खोज और आंतरिक विकास का मार्ग प्रशस्त करता है।

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