श्रेयान्स्वधर्मो विगुणः परधर्मात्स्वनुष्ठितात्।
स्वधर्मे निधनं श्रेयः परधर्मो भयावहः।।
स्वधर्मे निधनं श्रेयः परधर्मो भयावहः।।
अर्थ दूसरे के धर्म को समुचित रूप से पालन करने की जगह हमें अपने धर्म के अनुसार जीना चाहिए। अपने धर्म का पालन करते हुए अगर मरना भी पड़े तो , दूसरों के धर्म के भयावह मार्ग को अपनाने से श्रेयकर होता है
व्याख्यागीता अध्याय 3 का श्लोक 35
हिन्दु,मुस्लिम,सिख,इसाई धर्म को मनुष्य अपना-अपना धर्म मानते हैं और अपने धर्म में बताए गए ज्ञान का ही अच्छी प्रकार आचरण करते हैं। भगवान कह रहे हैं कि मैं इन धर्मों की बात नहीं कर रहा हूँ इन सब धर्मों से भी अच्छा अपना खुद का धर्म (स्वधर्म) होता है। दूसरे के धर्म से तो अपना खुद का गुण रहित धर्म भी अच्छा है।
आप आध्यात्म विचार के हैं तो आप पे सात्विक गुण है आप आध्यात्म मार्ग पर चले यही आपका धर्म है।