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सदृशं चेष्टते स्वस्याः प्रकृतेर्ज्ञानवानपि।
प्रकृतिं यान्ति भूतानि निग्रहः किं करिष्यति।।
अर्थ सभी प्राणी प्रकृति से ही उत्पन्न होते हैं। ज्ञानी महापुरुष भी अपनी प्रकृति के अनुसार क्रियाएँ करते हैं, और इसमें किसी का हठ नहीं चलता व्याख्यागीता अध्याय 3 का श्लोक 33 सभी प्राणी प्रकृति के स्वभाव के अनुसार कर्म करते हैं। जैसे सत्व स्वभाव के मनुष्य ज्ञान व सुख की चेष्टा करते हैं। रजोगुण स्वभाव के व्यक्ति इच्छा पूर्ति के लिए कर्म करते हैं। तमोगुण वाले सब अज्ञानी निंद्रा व आलस्य में रहते हैं फिर इसमें किसी का हठ क्या करेगा। यह तो सबका स्वभाव प्रकृति स्वभाव है।
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अपने आप को गीता परमरहस्यम् की गहन शिक्षाओं में डुबो दें, यह एक कालातीत मार्गदर्शक है जो आत्म-खोज और आंतरिक विकास का मार्ग प्रशस्त करता है।

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