ये त्वेतदभ्यसूयन्तो नानुतिष्ठन्ति मे मतम्।
सर्वज्ञानविमूढांस्तान्विद्धि नष्टानचेतसः।।
सर्वज्ञानविमूढांस्तान्विद्धि नष्टानचेतसः।।
अर्थ जब लोग मेरे विचारों को गलत समझते हैं और उन्हें अपनाने की बजाय उन्हें ठुकरा देते हैं, तो वे अपने स्वयं के लिए अहम नुकसान करते हैं। ऐसे लोगों को नुकसान होता है क्योंकि वे सच्चे ज्ञान के स्थान पर माया के मोह में उलझे रहते हैं और विवेकहीन बन जाते हैं। इससे उनका पतन होता है। व्याख्यागीता अध्याय 3 का श्लोक 32
भगवान के दिए हुए ज्ञान के मार्ग पर जो मनुष्य नहीं चलते और इस ज्ञान में दोष दृष्टि करते हैं अर्थात जैसे लोग कहते हैं कि कामना के बिना संसार का कार्य कैसे चलेगा। मोह,लोभ का तो त्याग हो ही नहीं सकता। जैसे संसार में सभी स्वार्थी मनुष्य चाहते हैं कि हमें ही सब पदार्थ मिले, हमें ही सुख हो, हमें ही लाभ हो। ऐसे क्या पता भगवान को लोभ हो तब ही तो कह रहे हैं कि मेरे अर्पण कर,इस प्रकार मानना भगवान के ‘मत’ पर दोषा रोपण करना है। इस प्रकार भगवान के दिए ज्ञान में कमियां निकाल कर भगवान के बताये रास्ते पर नहीं चलते उन मूढ़ी व अविवेकी मनुष्य को नष्ट हुए ही समझो यानि उनका पतन ही होता है।