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यद्यदाचरति श्रेष्ठस्तत्तदेवेतरो जनः।
स यत्प्रमाणं कुरुते लोकस्तदनुवर्तते।।
अर्थ महान और उत्तम पुरुष जो कर्म करते हैं आमजन उनका अनुसरण करते हैं वह जो प्रमाणित कर देते हैं अन्य उसके अनुसार ही व्यवहार करते हैं व्याख्यागीता अध्याय 3 का श्लोक 21 श्रेष्ठ पुरूषों का वर्णन किया गया है। जिसके आचरण सदा शास्त्र मर्यादा के अनुकूल ही होते हैं। कोई देखे या ना देखे, इच्छा न रहने के कारण उनमें स्वभाविक ही कर्त्तव्य का पालन होता है। जैसे जंगल में कोई फूल खिला और कुछ समय बाद मुरझा गया और सूख कर गिर गया। उसे किसी ने देखा नहीं फिर भी चारों और अपनी सुगन्ध फैलाकर दुर्गन्ध का नाश किया इसी तरह श्रेष्ठ पुरूष होते हैं। टीम का लीडर हो या घर का मुखिया छोटे बच्चे बड़ों की ही देखा देखी करते है। श्रेष्ठ मनुष्य जो-जो आचरण करते हैं दूसरे मनुष्य वैसा ही आचरण करते हैं। वह जो प्रमाण कर देते हैं दूसरे मनुष्य उसी के अनुसार आचरण करते हैं।
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अपने आप को गीता परमरहस्यम् की गहन शिक्षाओं में डुबो दें, यह एक कालातीत मार्गदर्शक है जो आत्म-खोज और आंतरिक विकास का मार्ग प्रशस्त करता है।

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