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एवं प्रवर्तितं चक्रं नानुवर्तयतीह यः।
अघायुरिन्द्रियारामो मोघं पार्थ स जीवति।।
अर्थ हे पार्थ! जो व्यक्ति इस लोक में प्रचलित सृष्टि चक्र के अनुसार नहीं चलता, वह इन्द्रियों के द्वारा भोगों में विचरण करने वाला और पापमय जीवन बिताने वाला होता है और ऐसा मनुष्य संसार में व्यर्थ ही जीता है व्याख्यागीता अध्याय 3 का श्लोक 16 जो मनुष्य अपने जीवन में इस तरह त्याग करके यज्ञ नहीं करते हैं जो हमेशा से जैसे सृष्टि चक्र के अनुसार नहीं चलता वह मनुष्य इन्द्रियों के द्वारा अपने मन में ही मोहित हुआ। पापमय जीवन बिताने वाला इस संसार में व्यर्थ ही जीता है।
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अपने आप को गीता परमरहस्यम् की गहन शिक्षाओं में डुबो दें, यह एक कालातीत मार्गदर्शक है जो आत्म-खोज और आंतरिक विकास का मार्ग प्रशस्त करता है।

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