या निशा सर्वभूतानां तस्यां जागर्ति संयमी ।
यस्यां जाग्रति भूतानि सा निशा पश्यतो मुनेः ।।
यस्यां जाग्रति भूतानि सा निशा पश्यतो मुनेः ।।
अर्थ सम्पूर्ण प्राणियों की जो रात है, उसमें संयमी मनुष्य जागता है और जिसमें सब प्राणी जागते हैं, वह तत्व को जानने वाले मुनि की दृष्टि में रात है। व्याख्यापृथ्वी के सम्पूर्ण प्राणियों के लिए जो रात होती है उस समय भी समसाधक योगी हमेशा उस ज्ञान स्वरूप परम आनंद प्रभु की प्राप्ति के लिए रात्रि में जगता है और जब सारे मानव दिन निकलने के बाद नाशवान सांसारिक सुख के लिए दौड़ते हैं,
उस वक्त वह ज्ञानी जो समसाधक है उसके लिए दिन रात के समान है क्योंकि ज्ञानी को पता है संसार में इकट्ठा किया हुआ सुख हमेशा नहीं रहता। शरीर के छूटते ही सब नाशवान हो जाता है।
ज्ञानी उस आनंद की खोज करते हैं जो अविनाशी है (जिसका नाश नहीं होता) इसलिए समसाधक के लिए दिन रात्रि के समान है व रात्रि दिन के समान है।