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नास्ति बुद्धिरयुक्तस्य न चायुक्तस्य भावना ।
न चाभावयतः शान्तिरशान्तस्य कुतः सुखम् ।।
अर्थ "जिसके मन-इन्द्रियाँ संयमित नहीं है, ऐसे मनुष्य की बुद्धि नहीं होती और बुद्धि न होने से उस अयुक्त मनुष्य में निष्काम भाव नहीं होता। निष्काम भाव न होने से उसको शांति नहीं मिलती, फिर शांति रहित मनुष्य को सुख कैसे मिल सकता है ?" व्याख्याजिसका मन व इन्द्रियां वश में नहीं होती, ऐसा मनुष्य आयुक्त होता है (असंयमी) जो संयम रखने वाला नहीं। उसमें बुद्धि भी नहीं होती, बुद्धि ना होने से मनुष्य में निष्काम भाव नहीं होता (यानि कर्मयोगी नहीं होता)। निष्काम भाव ना होने से फल की इच्छा बनी रहती है। इच्छा रखने वाले मनुष्य को शांति नहीं मिलती, जिसको शांति नहीं ऐसे मनुष्य को सुख कैसे मिल सकता है इसलिए संयम रखें व प्रभु के साथ सम रहें।
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अपने आप को गीता परमरहस्यम् की गहन शिक्षाओं में डुबो दें, यह एक कालातीत मार्गदर्शक है जो आत्म-खोज और आंतरिक विकास का मार्ग प्रशस्त करता है।

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