ध्यायतो विषयान्पुंसः संगस्तेषूपजायते ।
संगात्संजायते कामः कामात्क्रोधोऽभिजायते ।।
क्रोधाद्भवति सम्मोहः सम्मोहात्स्मृतिविभ्रमः ।
स्मृतिभ्रंशाद् बुद्धिनाशो बुद्धिनाशात्प्रणश्यति ।।
संगात्संजायते कामः कामात्क्रोधोऽभिजायते ।।
क्रोधाद्भवति सम्मोहः सम्मोहात्स्मृतिविभ्रमः ।
स्मृतिभ्रंशाद् बुद्धिनाशो बुद्धिनाशात्प्रणश्यति ।।
अर्थ विषयों का चिंतन करने वाले मनुष्य की उन विषयों में आसक्ति पैदा हो जाती है, आसक्तियों से काम पैदा होता है। काम में बाधा लगने पर क्रोध पैदा होता है, क्रोध होने पर सम्मोह मूढ़भाव हो जाता है। सम्मोह से स्मृति भ्रष्ट हो जाती है। स्मृति भ्रष्ट हो जाने पर बुद्धि विवेक का नाश हो जाता है। बुद्धि का नाश हो जाने पर मनुष्य का पतन हो जाता है। व्याख्याभगवान के परायण ना होने से, भगवान का चिंतन ना होने से माया के विषयों में चिंतन होता है, कारण कि जीवात्मा के एक तरफ ईश्वर है, दूसरी तरफ संसार।
जब ईश्वर का आश्रय छोड़ देता है जीव, तब संसार का आश्रय लेता है, संसार का चिंतन करने से मनुष्य की विषयों में आसक्ति हो जाती है। आसक्ति पैदा होने से मानव उन विषयों का सेवन करता है।
विषयों का सेवन चाहे मानसिक हो या शारीरिक उसमें सुख होता है यानि प्रियता आ जाती है। प्रियता से बार-बार चिंतन होने लगता है, चिंतन से विषयों में राग पैदा हो जाता है, राग पैदा होने से उन विषयों में कामना पैदा हो जाती है कि यह सब मुझे मिले और उस कामना के लोभ में प्राणी कार्य करता है और उन कामनाओं को पूरा करने में बाधा आती है तो मनुष्य में क्रोध आता है। क्रोध पैदा होने पर मूढ भाव हो जाता है-
- काम में सम्मोह होता है उसमें विवेक शक्ति ढक जाने से मानव काम के वशीभूत होकर न करने लायक कार्य कर बैठता है ।
- क्रोध में मनुष्य मित्रों और बड़ों को उल्टी-सीधी बातें कह देता है न करने लायक बर्ताव कर देता है
- लोभ में सत्य, असत्य, धर्म, अधर्म आदि का विचार नहीं करता।
- मोह में समभाव नहीं होता पक्षपात पैदा हो जाता है।