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न चैतद्विद्मः कतरन्नो गरीयो यद्वा जयेम यदि वा नो जयेयुः।
यानेव हत्वा न जिजीविषाम स्तेऽवस्थिताः प्रमुखे धार्तराष्ट्राः।।
अर्थ हम यह भी नहीं जानते कि हम लोगों के लिए युद्ध करना और न करना इन दोनों में कौन सा श्रेष्ठ है अथवा हम उन्हें जीतेंगे जिनको मारकर हम जीना भी नहीं चाहते। वे ही धृतराष्ट्र के सम्बन्धी हमारे सामने खड़े हैं। व्याख्यामैं युद्ध करूं या ना करूं यह निर्णय मैं नहीं ले पा रहा हूँ क्योंकि आपकी नजरों में युद्ध करना श्रेष्ठ है और मेरी नजरों में युद्ध करना पाप है इन दोनों में मेरे लिए कौनसा पक्ष श्रेष्ठ है मैं नहीं जान पा रहा हूँ। युद्ध में हम यह भी नहीं जानते कि वह हम जीतेंगे या हम उनको (यहाँ अर्जुन को अपने बलपर विश्वास नहीं है) जिनको मारकर हम जीना भी नहीं चाहते वह धृतराष्ट्र के पुत्र हमारे सामने खड़े हैं। धृतराष्ट्र के सभी सम्बन्धी हमारे कुटुम्बी ही तो है उन कुटुम्बीयों को मारकर जीने में मेरे लिये धिक्कार है।
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अपने आप को गीता परमरहस्यम् की गहन शिक्षाओं में डुबो दें, यह एक कालातीत मार्गदर्शक है जो आत्म-खोज और आंतरिक विकास का मार्ग प्रशस्त करता है।

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