Logo
दुःखेष्वनुद्विग्नमनाः सुखेषु विगतस्पृहः।
वीतरागभयक्रोधः स्थितधीर्मुनिरुच्यते ।।
अर्थ दुःखों की प्राप्ति होने पर जिसके मन में उद्वेग नहीं होता और सुखों की प्राप्ति होने पर जिसके मन में स्पृहा नहीं होती तथा जो राग, भय और क्रोध से सर्वथा रहित हो गया है, उस स्थिर बुद्धि को मुनि कहा गया है। व्याख्यादुखों की प्राप्ति होने पर योगी के मन मे उद्वेग नहीं होता यानि हलचल नहीं होती। वह सुख दुःख में सम रहते हैं। ज्ञानी को पता होता है कि सुख-दुःख तो गर्मी-सर्दी की तरह आने जाने वाले हैं इसलिए साधक सुख में भी स्थिर रहता है व दुःख में भी स्थिर रहता है। मन पर जो संसार की इच्छाओं का रंग चढ़ जाता है, वह राग है, उस राग को पाने में विघ्न पड़ता है, वह भय है, वह वस्तु ना मिलने पर मानव को क्रोध आता है परन्तु जिसके भीतर दूसरों को सुख पहुंचाने मानव सेवा के भाव जागृत हो जाते हैं अपने सारे कर्म प्रभु के कर्म समझ कर करते हैं वह योगी राग, क्रोध, भय से दूर हट जाते हैं और अपना जीवन प्रभु के चरणों में अर्पित कर देते हैं, वह मानव मुनि कहे जाते हैं।
logo

अपने आप को गीता परमरहस्यम् की गहन शिक्षाओं में डुबो दें, यह एक कालातीत मार्गदर्शक है जो आत्म-खोज और आंतरिक विकास का मार्ग प्रशस्त करता है।

Follow us on

अधिक जानकारी या निस्वार्थ योगदान के लिए आज ही संपर्क करे।

[email protected] [email protected]