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श्रुतिविप्रतिपन्ना ते यदा स्थास्यति निश्चला ।
समाधावचला बुद्धिस्तदा योगमवाप्स्यसि ।।
अर्थ जिस काल में शास्त्रीय मतभेदों से विचलित हुई तेरी बुद्धि निश्चल हो जाएगी और परमात्मा में अचल हो जाएगी, उस काल में तू योग को प्राप्त हो जाएगा। व्याख्याजिस समय में शास्त्रीय मतभेदों में विचलित हुई तेरी बुद्धि सम हो जाएगी, आत्मा में ठहर जाएगी, उस वक्त तू समयोग को प्राप्त हो जाएगा। लोगों को शास्त्रों में बहुत मतभेद हैं- किसी ने कुछ सुन रखा है, किसी ने कुछ... कोई कहता है प्रभु ऊपर है ब्रह्म में, कोई कहता है अपने भीतर है, कोई कहता है कण-कण में भगवान है, कोई कहता है स्वर्ग में है प्रभु, कोई मंदिर में बताता है। इन बातों को आजतक सुनकर ही व्यक्ति की बुद्धि विचलित हो जाती है जिस समय विचलित बुद्धि ठहर जाती है तब समयोग को प्राप्त हो जाता है योगी।
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अपने आप को गीता परमरहस्यम् की गहन शिक्षाओं में डुबो दें, यह एक कालातीत मार्गदर्शक है जो आत्म-खोज और आंतरिक विकास का मार्ग प्रशस्त करता है।

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