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यदा ते मोहकलिलं बुद्धिर्व्यतितरिष्यति।
तदा गन्तासि निर्वेदं श्रोतव्यस्य श्रुतस्य च ।।
अर्थ जिस समय तेरी बुद्धि मोह रूपी दल-दल को भली भांति तर जायेगी उसी समय तू सुने हुए और सुनने में आने वाले भोगों से वैराग्य को प्राप्त हो जाएगा। व्याख्याभगवान कह रहे हैं कि जिस समय से ब्रह्म बना है तब से ही जीव आगे से आगे जन्म लेकर भटक रहा है और जब तक ज्ञान नहीं होगा भटकता ही रहेगा, लेकिन जिस समय में बुद्धि मोह रूपी दल-दल से तर जाएगी, यानि इस संसार में आपको जिस भी व्यक्ति या वस्तु से मोह है, तब तक दल-दल है। मोह वह दल-दल है जिसमें फँसने के बाद व्यक्ति हमेशा धँसता ही रहता है और अगर इस मोह रूपी दल-दल को आपने सम होकर पार कर दिया उस वक्त, जो आजतक सुना है या सुनने में आ रहा है, उन सब भोगों से वैराग्य (छुटकारा) हो जाएगा।
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अपने आप को गीता परमरहस्यम् की गहन शिक्षाओं में डुबो दें, यह एक कालातीत मार्गदर्शक है जो आत्म-खोज और आंतरिक विकास का मार्ग प्रशस्त करता है।

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