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कर्मजं बुद्धियुक्ताहि फलं त्यक्त्वा मनीषिणः।
जन्मबन्धविनिर्मुक्ताः पदं गच्छन्त्यनामयम् ।।
अर्थ कारण कि समता युक्त बुद्धिमान साधक कर्म जन्य फल का त्याग करके जन्म रूप बंधन से मुक्त होकर निर्विकार पद को प्राप्त हो जाता व्याख्यासमबुद्धि को जो ज्ञानी धारण (युक्त) किये हुए हैं, वह जन्मरूप बंधन से मुक्त हो जाते हैं, कारण की समता में स्थिर है उस ज्ञानी को काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार आदि दोष चिन मात्र भी लिप्त नहीं करते। उसमें पुनर्जन्म का कारण ही नहीं रहता। वह जन्म-मरण बंधन से सदा के लिए मुक्त हो जाते हैं। समयोग में कर्म करने से कर्म व भगवान की प्राप्ति दोनों हो जाती है।
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अपने आप को गीता परमरहस्यम् की गहन शिक्षाओं में डुबो दें, यह एक कालातीत मार्गदर्शक है जो आत्म-खोज और आंतरिक विकास का मार्ग प्रशस्त करता है।

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