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यामिमां पुष्पितां वाचं प्रवदन्त्यविपश्चितः।
वेदवादरताः पार्थ नान्यदस्तीति वादिनः ॥

कामात्मानः स्वर्गपरा जन्मकर्मफलप्रदाम्।
क्रियाविशेषबहुला भोगैश्वर्यगति प्रति ॥

भोगैश्वर्यप्रसक्तानां तयापहृतचेतसाम् |
व्यवसायात्मिका बुद्धि: समाधौ न विधीयते ||
अर्थ "हे पार्थ! जो कामनाओं में तन्मय हो रहे हैं। स्वर्ग को श्रेष्ठ मानने वाले हैं, वेदों में कहे हुए सकाम कर्मों में प्रीति रखने वाले हैं। भोगों के सिवाय और कुछ है ही नहीं, ऐसा कहने वाले हैं। वे अविवेकी मनुष्य इस प्रकार की जिस दिखाऊ वाणी को कहा करते हैं जो कि जन्मरूपी कर्म फल को देने वाली है तथा भोग और ऐश्वर्य की प्राप्ति के लिए बहुत सी क्रियाओं का वर्णन करने वाली है। उस पुष्पित वाणी से जिसका मन हर लिया गया है। अर्थात् भोगों की तरफ खींच गया है और जो भोग तथा ऐश्वर्य में अत्यन्त आसक्त है। उन मनुष्यों की परमात्मा में एक निश्चय वाली बुद्धि नहीं होती।" व्याख्याअनिश्चय बुद्धि वाले कामनाओं में इतने पागल रहते हैं कि वे कामना रूप ही बन जाते हैं। उनको अपने में व कामना में भिन्नता ही नहीं दिखती। उनकी तो यह सोच होती है कि कामनाओं के बिना व्यक्ति जी नहीं सकता। कामना के बिना व्यक्ति पत्थर की तरह जड़ हो जाता है। उसकी चेतना भी नहीं रहती वह तो पागल बन जाते हैं ऐसे लोग कहते हैं कि वेदों में बताये गये ज्ञान के सिवा कुछ है ही नहीं। ऐसे लोगों की सोच होती है कि स्वर्ग में अच्छे से भी अच्छे दिव्य भोग मिलते हैं। इसलिए उनके लक्ष्य में स्वर्ग ही सर्वश्रेष्ठ होता है और ऐसे मनुष्य स्वर्ग की प्राप्ति में ही दिन रात लगे रहते हैं। जो वेदों में आस्था रखते हैं वे वेदों में कहे हुए सारे कर्मों में प्रीति रखने वाले होते हैं। उनकी मान्यता के हिसाब से यहां के और स्वर्ग के भोगों के सिवाय और कुछ है ही नहीं। उनकी दृष्टि के हिसाब से भोग, ऐश्वर्य, स्वर्ग के सिवाय और कुछ नहीं है। इनके सिवाय परमात्मा, तत्वज्ञान, मोक्ष, शून्य समाधि आदि कोई चीज है ही नहीं। वे भोगों के ही रंग में रंगे रहते हैं। भोग भोगना इनका मुख्य लक्ष्य होता है। यह फूल पत्तियों को चाहने वाले होते हैं, फल नहीं। तृप्ति फल से होती है, फूल पत्तियों से नहीं। जो अपने मन को कामनाओं में लगाते हैं उनके विचारों में स्वर्ग ही श्रेष्ठ है। निराकार सत चित आनन्द का ज्ञान इनको भय करता है। क्योंकि इनको लगता है अगर मोक्ष को प्राप्त हो गये तो भोगों को कैसे भोगेंगे, इसलिए यह स्वर्ग ही श्रेष्ठ मानते हैं। ऐसे लोग बहुत से कामों में उलझे रहते है। जिसको करने से इनको धन मिले जिससे भोग व ऐश्वर्य की यह प्राप्ति कर सके। अगले जन्म में इसका फल अच्छा मिलेगा इस बात को सोच कर यह लोगों में दिखावा करके दान देते हैं। ऐसी सोच व कामना के कारण मनुष्य दोबारा जन्म लेता रहता है। ऐसे अनिश्चय बुद्धि वाले व्यक्ति सबसे पहले कामना प्रकट करते हैं फिर उस कामना की पूर्ति के लिए क्रियाएं करते हैं। फिर जो क्रिया कर्म किया उसके फल मिलने कि इच्छा करते हैं (भोग एवं ऐश्वर्य से अपने को आसक्तियों से बांध लेते हैं) स्वर्ग से बड़ा इनके लिए कोई ज्ञान नहीं। फिर इस जन्म के फल अगले जन्म में मिलेंगे उस हिसाब से यह अगला जन्म लेते हैं। कामना → क्रियाएं → भोग एवं ऐश्वर्य → स्वर्ग → जन्म ऐसे जिनका मन हर लिया गया है (शब्द, स्पर्श, रूप, रस, गंध इनसे शरीर व मन को सुख मिलता है इस सुख के लिए वेदों में कहे अनुसार स्वर्ग में बड़ा भारी सुख है। दिव्य भोग है, सुन्दर अप्सराएं हैं, अमृत है, दूध की नदियां बहती हैं, ऐसी वाणी से जिनका मन भोगों की तरफ खिंच गया है) उनकी अस्थिर बुद्धि होती है निश्चय वाली बुद्धि ऐसे लोगों की नहीं होती।
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अपने आप को गीता परमरहस्यम् की गहन शिक्षाओं में डुबो दें, यह एक कालातीत मार्गदर्शक है जो आत्म-खोज और आंतरिक विकास का मार्ग प्रशस्त करता है।

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