व्यवसायात्मिका बुद्धिरेकेह कुरुनन्दन।
बहुशाखा ह्यनन्ताश्च बुद्धयोऽव्यवसायिनाम्।।
बहुशाखा ह्यनन्ताश्च बुद्धयोऽव्यवसायिनाम्।।
अर्थ हे कुरूनन्दन ! इस समबुद्धि की प्राप्ति के विषय में निश्चय वाली बुद्धि एक ही होती है। जिनका एक निश्चय नहीं है, ऐसे मनुष्यों की बुद्धि अनन्त और बहुत शाखाओं वाली ही होती है। व्याख्याहे कुरूनन्दन! निश्चय वाली बुद्धि एक होती है। यानि इस कर्म योग के मार्ग पर जो साधक चलते हैं उनकी बुद्धि स्थिर होती है।
जो योगी है वह किसी काम को शुरू करने से पहले सब गणित करके निश्चय कर लेता है कि यह भगवत स्वरूप मार्ग है जो मैंने योगरूप धर्म धारण कर रखा है और इसको मैंने प्रभु कार्य समझकर मानव सेवा के लिए चुना है।
इस भगवत स्वरूप मार्ग पर चलना मेरे योग का धर्म है, सर्वहित का जो कार्य होता है, योगी उसमें निश्चय कर लेता है। फिर उस काम को करने में कितनी भी तकलीफ आये वह उस काम को करने में पीछे नहीं हटता क्योंकि जब बुद्धि से योगी निश्चय कर लेता है फिर वह उसी पर स्थिर रहता है।
उसको निश्चय वाली एक बुद्धि कहते हैं। अनिश्चय वाले मनुष्यों की बुद्धि अनंत और बहुत शाखाओं वाली होती है।
जिनके भीतर संसार भोग की कामना होती है, उनकी बुद्धि अनिश्चय वाली होती है। कामना के कारण मनुष्य की बुद्धि अनन्त होती है और उन बुद्धियों की अनन्त शाखाएं होती हैं।
जैसे किसी को सन्तान चाहिए यह एक बुद्धि हुई, पुत्र प्राप्ति के लिए औषधी का सेवन करना, मंत्र जाप करना, किसी संत का आशीर्वाद लेना, उस बुद्धि की ऐसे अनन्त शाखाएं होती हैं।
जीवन का सही उद्देश्य एक ही होता है। जब तक मनुष्य का एक उद्देश्य नहीं होता तब तक मनुष्य के अनेक उद्देश्य होते हैं और हर उद्देश्य की अनेक शाखाएं होती हैं। अनन्त शाखाएं होती हैं।
‘‘****इस प्रकार के अनिश्चय वाले मनुष्य क्या कहा करते हैं आगे के 3 श्लोकों में देखें’’