एषा तेऽभिहिता सांख्ये बुद्धिर्योगे त्विमां श्रृणु।
बुद्ध्या युक्तो यया पार्थ कर्मबन्धं प्रहास्यसि।।
बुद्ध्या युक्तो यया पार्थ कर्मबन्धं प्रहास्यसि।।
अर्थ हे पार्थ ! यह समबुद्धि तेरे लिए पहले सांख्ययोग में कही गई और अब तू इसको कर्मयोग के विषय में सुन, जिस समबुद्धि से युक्त हुआ तू कर्म बन्धन को त्याग देगा। व्याख्याशरीर और आत्मा के विभाग को जानकर शरीर विभाग से वैराग्य करना सांख्ययोग है। अब तक जितने श्लोकों पर बात हुई वह ज्ञानयोग है जैसे आत्मा अमर है, शरीर मरते हैं आत्मा नहीं, अपने धर्म में सम होकर युद्ध करना क्षत्रिय का धर्म है। यह सब बातें तेरे लिए ज्ञान के विषय में कही है।
अब तू इसी स्थिर बुद्धि को जो ज्ञानयोग में कही उसी समबुद्धि को कर्मयोग के विषय में सुन।
भगवान कह रहे हैं हे पार्थ! अब उसी बुद्धि को कर्मयोग में सुन जिस को जानकर (ज्ञान होने पर) तू कुछ भी संसार में कर्म करेगा उनके (फल, पाप पुण्य, आसक्तियां) बंधन को तू यहीं संसार में त्याग देगा, जिससे तुझको कोई पाप नहीं लगेगा।
समबुद्धि को बहुत अच्छे से जानने के लिए पढ़े:- ‘‘****समसाधना ध्यानयोग’’ पुस्तक