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अवाच्यवादांश्च बहून् वदिष्यन्ति तवाहिताः।
निन्दन्तस्तव सामर्थ्यं ततो दुःखतरं नु किम्।।
अर्थ तेरे शत्रुलोग तेरी सामर्थ्य की निन्दा करते हुए बहुत से न कहने योग्य वचन भी कहेंगे। उससे बढ़कर और दुःख की बात क्या होगी ? व्याख्यादुर्योधन, दुशासन, कर्ण और भी बहुत से शत्रु वह तेरी सामर्थ्य की निन्दा करेंगे और कहेंगे यह तो हिजड़ा है योद्धा नहीं। देखो युद्ध के मौके पर हो गया ना युद्ध से दूर, क्या यह हमारे सामने टिक सकता है, क्या यह हमारा मुकाबला कर सकता है। ऐसे न सहने वाले शब्दों को तू कैसे सहेगा। उस दुख से बड़ा एक क्षत्रिय के लिए क्या दुख होगा।
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अपने आप को गीता परमरहस्यम् की गहन शिक्षाओं में डुबो दें, यह एक कालातीत मार्गदर्शक है जो आत्म-खोज और आंतरिक विकास का मार्ग प्रशस्त करता है।

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