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देही नित्यमवध्योऽयं देहे सर्वस्य भारत।
तस्मात्सर्वाणि भूतानि न त्वं शोचितुमर्हसि।।
अर्थ हे भारत अर्जुन ! सबके शरीर में यह आत्मा नित्य ही अवध्य है। इसलिए सम्पूर्ण प्राणियों के लिए अर्थात् किसी भी प्राणी के लिए तुम्हें शोक नहीं करना चाहिए। व्याख्यामनुष्य, पशु, पक्षी, कीट, पतंगे आदि सम्पूर्ण प्राणियों के शरीरों में यह आत्मा सदा ही अवध्य है। अर्थात् शरीर नाशवान है और आत्मा अविनाशी है। आत्मा का कभी कोई वध नहीं कर सकता और शरीर को कोई बचा नहीं सकता। इसलिए सब शरीरों के लिए तुमको शोक करना उचित नहीं।
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अपने आप को गीता परमरहस्यम् की गहन शिक्षाओं में डुबो दें, यह एक कालातीत मार्गदर्शक है जो आत्म-खोज और आंतरिक विकास का मार्ग प्रशस्त करता है।

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