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अव्यक्तादीनि भूतानि व्यक्तमध्यानि भारत।
अव्यक्तनिधनान्येव तत्र का परिदेवना।।
अर्थ हे भारत ! सभी प्राणी जन्म से पहले अप्रकट थे और मरने के बाद अप्रकट हो जाएंगे, केवल बीच में ही प्रकट दिखते हैं। अतः इसमें शोक करने की बात ही क्या है। व्याख्यासांस लेने वाले जितने भी शरीर है वह सब प्राणी है। यह सभी प्राणी मरने के बाद अप्रकट हो जाएंगे। यह सभी प्राणी बीच में प्रकट दिखाई देते हैं (जन्म के बाद मृत्यु से पहले) जैसे सोने से पहले स्वप्न नहीं था और जागने पर भी स्वप्न नहीं रहा केवल बीच में (नींद में) ही स्वप्न था। जो आदि और अन्त में नहीं होता वह बीच में भी नहीं होता। यह सिद्धान्त है, सभी प्राणियों के शरीर पहले भी नहीं थे और बाद में भी नहीं रहेंगे और बीच में भी स्थाई नहीं है। परन्तु आत्मा पहले भी थी बाद में भी रहेगी वह बीच में तो है ही भगवान कह रहे हैं हे अर्जुन! इसमें शोक करने की बात ही क्या है।
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अपने आप को गीता परमरहस्यम् की गहन शिक्षाओं में डुबो दें, यह एक कालातीत मार्गदर्शक है जो आत्म-खोज और आंतरिक विकास का मार्ग प्रशस्त करता है।

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