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अव्यक्तोऽयमचिन्त्योऽयमविकार्योऽयमुच्यते।
तस्मादेवं विदित्वैनं नानुशोचितुमर्हसि।।
अर्थ यह आत्मा प्रत्यक्ष नहीं दिखती, यह चिन्तन का विषय नहीं है और यह विकार रहित कहा जाता है। अतः इस आत्मा को ऐसा जानकर शोक नहीं करना चाहिए। व्याख्याजैसे शरीर देखने में आता है, संसार देखने में आता है, स्थूल रूप से, वैसे आत्मा स्थूल रूप से देखने में आनेवाला नहीं। क्योंकि यह स्थूल सृष्टि रहित है इसलिए इसको अव्यक्त कहा है। अचिन्तय अर्थात् मन, बुद्धि आदि देखने में नहीं आते, पर चिन्तन में आते हैं। परन्तु आत्मा चिन्तन का भी विषय नहीं। इसलिए इसको अचिन्तय कहा और यह आत्मा विकार रहित है। (यानि किसी भी प्रकार की इसमें कमी नहीं है) इस प्रकार भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन को ज्ञान दिया, जिस तरह भगवान ने ज्ञान दिया उस प्रकार आत्मा को जानकर शोक नहीं करना चाहिए।
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अपने आप को गीता परमरहस्यम् की गहन शिक्षाओं में डुबो दें, यह एक कालातीत मार्गदर्शक है जो आत्म-खोज और आंतरिक विकास का मार्ग प्रशस्त करता है।

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