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नैनं छिन्दन्ति शस्त्राणि नैनं दहति पावकः।
न चैनं क्लेदयन्त्यापो न शोषयति मारुतः।।

अच्छेद्योऽयमदाह्योऽयमक्लेद्योऽशोष्य एव च।
नित्यः सर्वगतः स्थाणुरचलोऽयं सनातनः।।
अर्थ शस्त्र इस आत्मा को काट नहीं सकते, अग्नि इसको जला नहीं सकती, जल इसको गीला नहीं कर सकता और वायु इसको सुखा नहीं सकती। यह आत्मा काटी नहीं जा सकती, यह जलायी नहीं जा सकती, इसे गीला नहीं किया जा सकता और यह सुखायी भी नहीं जा सकती। कारण कि यह नित्य रहने वाली, सबमें परिपूर्ण अचल, स्थिर स्वभाव वाली और सनातन है। व्याख्याआपके सामने जो खाली आकाश (स्पेस) है इसको अगर आप काट सको तो आत्मा कटे। ऐसे ही शस्त्र इसको काट नहीं सकते। आपके चारों तरफ अग्नि है लेकिन अदृश्य है दिखाई नहीं देती अगर आपको देखना है कि अग्नि यहाँ है कि नहीं, तीली जला कर देख लो अग्नि अभी प्रकट हो जायेगी। जैसे अग्नि हमारे चारों तरफ है दिखाई नहीं देती ऐसे ही आत्मा सर्वत्र दिशाओं में व्याप्त है। जैसे अग्नि जलाने से खाली आकाश (स्पेस) नहीं जलता। ऐसे ही आत्मा को आग जला नहीं सकती। जैसे जल आकाश (स्पेस) को गीला नहीं कर सकता और वायु आकाश को सुखा नहीं सकती क्योंकि यह आत्मा अछेद है। कोई भी शस्त्र से आप आत्मा में छेद नहीं कर सकते यह आत्मा नित्य है अर्थात् अनादीकाल से है अब तक, व हमेशा रहेगा। सर्वव्यापी अचल स्थिर यह आत्मा दसों दिशाओं में व्याप्त है। इसलिए इसको सर्वव्यापी कहा है यह आत्मा अपनी जगह स्थिर है। अचल है। परम अचल है ब्रह्मचल है और यह आत्मा रूपी परम हमेशा से रहने वाला सनातन है।
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अपने आप को गीता परमरहस्यम् की गहन शिक्षाओं में डुबो दें, यह एक कालातीत मार्गदर्शक है जो आत्म-खोज और आंतरिक विकास का मार्ग प्रशस्त करता है।

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