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वासांसि जीर्णानि यथा विहाय नवानि गृह्णाति नरोऽपराणि।
तथा शरीराणि विहाय जीर्णा न्यन्यानि संयाति नवानि देही।।
अर्थ मनुष्य जैसे पुराने कपड़ों को छोड़कर दूसरे नये कपड़े धारण कर लेता है। ऐस ही जीवात्मा पुराने शरीर को छोड़कर दूसरे नये शरीर में चली जाती है। व्याख्याहम हर रोज कपड़े बदलते हैं। लेकिन इन कपड़ों में रहने वाला शरीर तो हर रोज वही होता है। कपड़े उतारने से हम मर नहीं जाते। कपड़े पहनने से जन्म नहीं जाते ऐसे ही पुराने शरीर को छोड़ने से हम मर नहीं जाते, नये शरीर को धारण करने से पैदा नहीं हो जाते। शरीर में जीव (यानि मन की बनी तरंगों का एक जोड़) सूक्ष्म जड़ों की ग्रंथी ही जीव है, जीव इस शरीर में ऐसे है जैसे हम कमरे में रहते है कमरा पुराना होने के बाद हम उसको छोड़कर नया घर लेते हैं। पुराना कमरा मिट्टी से बना मिट्टी में मिल जाता है ऐसे ही हमारा पुराना शरीर तत्त्वों से बना वापिस उसी में मिल जाता है लेकिन यह जीव ही आगे से आगे जन्म ले रहा है लेकिन आत्मा हमेशा थी हमेशा रहेगी इसका नाश नहीं होता ना आत्मा का जन्म होता है यह आत्मा सर्वत्र दसों दिशाओं में व्याप्त है। जैसे आपका शरीर कपड़े धारण करता है ऐसे ही जीव नया शरीर धारण करता है।
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अपने आप को गीता परमरहस्यम् की गहन शिक्षाओं में डुबो दें, यह एक कालातीत मार्गदर्शक है जो आत्म-खोज और आंतरिक विकास का मार्ग प्रशस्त करता है।

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