न जायते म्रियते वा कदाचि न्नायं भूत्वा भविता वा न भूयः।
अजो नित्यः शाश्वतोऽयं पुराणो न हन्यते हन्यमाने शरीरे।।
वेदाविनाशिनं नित्यं य एनमजमव्ययम्।
कथं स पुरुषः पार्थ कं घातयति हन्ति कम्।।
अजो नित्यः शाश्वतोऽयं पुराणो न हन्यते हन्यमाने शरीरे।।
वेदाविनाशिनं नित्यं य एनमजमव्ययम्।
कथं स पुरुषः पार्थ कं घातयति हन्ति कम्।।
अर्थ यह आत्मा न कभी जन्मती है और न कभी मरती है तथा यह उत्पन्न होकर फिर होने वाली नहीं है क्योंकि यह नित्य-निरन्तर रहने वाली, शाश्वत और अनादि है। शरीर के मारे जाने पर भी यह नहीं मारी जाती।
हे पार्थ! जो मनुष्य इस आत्मा को अविनाशी, नित्य, जन्म रहित और अव्यय जानता है, वह कैसे किसको मारे और कैसे किसको मरवाये। व्याख्यायह आत्मा ना कभी जन्मता है न मरता है ना दोबारा उत्पन्न होता है क्योंकि यह नित्य, निरन्तर, शाश्वत, अनादी, नाश रहित, अजन्मा, अव्यय है यह शरीर के मारे जाने से भी नहीं मरता।
यह आत्मा नित्य हर रोज हर जगह ब्रह्म के कण-कण में समाई है। यह नित्य निरन्तर हमेशा रहने वाली अनादि शक्ति है इस आत्मा का कभी जन्म नहीं होता, यह आदि व अन्त से रहित है। तत्वज्ञानी वही है जो प्रकृति के हर कण में आत्मा का वास देख ले।
‘‘ज्ञानी को हर तत्व में आत्मा नजर आती है, अज्ञानी को तो आत्मा दूर की बात, तत्व ही नजर नहीं आता’’
यह शाश्वत है यह नित्य निरन्तर एकरूप रहने वाला और अविनाशी है यह आत्मा इतना पुराना है कि यह कभी पैदा ही नहीं हुआ यह हमेशा से है और हमेशा रहेगा यह आत्मा ना किसी को मारता है और ना मरता है।