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श्री भगवानुवाच

कुतस्त्वा कश्मलमिदं विषमे समुपस्थितम्।
अनार्यजुष्टमस्वर्ग्यमकीर्तिकरमर्जुन।।

क्लैब्यं मा स्म गमः पार्थ नैतत्त्वय्युपपद्यते।
क्षुद्रं हृदयदौर्बल्यं त्यक्त्वोत्तिष्ठ परन्तप।।
अर्थ "श्री भगवान बोले - हे अर्जुन! इस विषम अवसर पर तुम्हें यह कायरता कहाँ से प्राप्त हुई जिसका श्रेष्ठ पुरूष सेवन नहीं करते, जो स्वर्ग को देने वाली नहीं है और अमरता करने वाली भी नहीं है। हे पार्थ! इस नपुंसकता को मत प्राप्त हो, क्योंकि तुम्हारे में यह उचित नहीं है। हे परन्तप! हृदय की इस तुच्छ दुर्बलता का त्याग करके युद्ध के लिए खड़े हो जाओ।" व्याख्याभगवान आश्चर्य प्रकट करते हुए अर्जुन से कहते हैं कि ऐसे युद्ध के मौके पर तो तुझमें शूरवीरता व उत्साह आना चाहिए था पर इस मौके पर तुझमें यह कायरता कहाँ से आ गयी ? भगवान कह रहे हैं, इस समय पर सब लोग युद्ध में पहुंच चुके हैं और शंख बज चुका है। सब योद्धा युद्ध के लिए सामने तैयार खड़े हैं और तुम इस विषम अवसर पर मोह में पड़कर कायरता को प्राप्त हो गये हो इस मौके पर कायरता का कारण क्या है ? भगवान कह रहे हैं कि यह कायरता श्रेष्ठ पुरूषों का आचरण नहीं है जो श्रेष्ठ पुरूष होते हैं वह कायर नहीं होते और जो कायर होते हैं वो श्रेष्ठ पुरूष नहीं होते। इस कायरता से तुम श्रेष्ठ पुरूष नहीं बन सकते और ना ही स्वर्ग को प्राप्त कर सकते हो और तुम्हारी कीर्ति भी नहीं फैलेगी। मोह के कारण तुम्हारा युद्ध ना करने का निश्चय बहुत ही तुच्छ है जो तुम्हारा पतन करने वाला है तुम्हें नरक में ले जाने वाला है और तुम्हारी अपकीर्ति करने वाला है। मन की तुच्छ सी दुर्बलता है यह मोह और इस मोह के कारण तुम नपुंसकता को प्राप्त मत हो। मन के मोह को त्याग कर युद्ध के लिए खड़े हो जाओ। आगे अर्जुन युद्ध ना करने के विषय में बहुत सी दलीलें दे रहे हैं।
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अपने आप को गीता परमरहस्यम् की गहन शिक्षाओं में डुबो दें, यह एक कालातीत मार्गदर्शक है जो आत्म-खोज और आंतरिक विकास का मार्ग प्रशस्त करता है।

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