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अन्तवन्त इमे देहा नित्यस्योक्ताः शरीरिणः।
अनाशिनोऽप्रमेयस्य तस्माद्युध्यस्व भारत।।
अर्थ इस अविनाशी आत्मा के ये शरीर अंत वाले कहे गए हैं। इसलिए हे भारत तुम युद्ध करो। व्याख्याजो यह अविनाशी आत्मा है जिसमें सम्पूर्ण जगत रचा हुआ है। इस अविनाशी आत्मा के यह शरीर अंत वाले कहे गए हैं। यानि जितने भी जीवों के शरीर है जैसे पशु, पक्षी, मानव, कीट, पतंगे, ‘‘जितने भी जीव जन्तुओं के शरीर है’’ इनका अंत होता है। फिर जन्मते हैं शरीर फिर मर जाते हैं। इस आत्मा के सभी शरीर नाशवान हैं। भगवान कह रहे हैं अर्जुन को कि जिनको तू पिता, पितामह, कुरूवंशी कहता है यह सब शरीर मरने वाले हैं तू नहीं मारेगा तो भी इनको मरना तो पड़ेगा ही। लेकिन इनके भीतर अविनाशी आत्मा है वह कभी नहीं मरती, शरीर जन्मता व मरता है अगर शरीर का मरना सत्य है तो हे भारत तुम युद्ध करो।
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अपने आप को गीता परमरहस्यम् की गहन शिक्षाओं में डुबो दें, यह एक कालातीत मार्गदर्शक है जो आत्म-खोज और आंतरिक विकास का मार्ग प्रशस्त करता है।

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