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अविनाशि तु तद्विद्धि येन सर्वमिदं ततम्।विनाशमव्ययस्यास्य न कश्चित्कर्तुमर्हति।।
अर्थ अविनाशी तो उसको जान, जिससे यह सम्पूर्ण संसार व्याप्त है। इस अविनाशी का विनाश कोई नहीं कर सकता। व्याख्याअविनाशी तो तू उसको जान, इस संसार में हर वस्तु परिवर्तनशील है। जो परिवर्तनशील नहीं है, वह अविनाशी है। जिसमें सम्पूर्ण जगत (ब्रह्म) व्याप्त है। अर्थात् आप समझें इस शब्द को यह सम्पूर्ण जगत अविनाशी परम में व्याप्त है। जैसे थियेटर का परदा अलग है मूवी अलग है। अब मूवी को चलाने व दिखाने के लिए परदे की जरूरत है बिना परदे के मूवी चल नहीं सकती। अब परदे पर मूवी चल रही है तो उस मूवी में कितनी गोलियाँ चले कितने ऐक्सीडेन्ट हो, परदे पर उन चीजों का कोई असर नहीं पड़ता, ऐसे ही सम्पूर्ण जगत अविनाशी परम के परदे पर चल रहा है। इस परम प्रभु का कोई विनाश कर ही नहीं सकता, क्योंकि मूवी में दिखने वाली बारिश कभी परदे को गीला नहीं कर सकती। संसार की उत्पत्ति, विनाश होता रहता है। लेकिन जिसने यह पूरा ब्रह्म अपने भीतर रच रखा है उसका विनाश कोई कर नहीं सकता। उसको तू अविनाशी जान।
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अपने आप को गीता परमरहस्यम् की गहन शिक्षाओं में डुबो दें, यह एक कालातीत मार्गदर्शक है जो आत्म-खोज और आंतरिक विकास का मार्ग प्रशस्त करता है।

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