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नासतो विद्यते भावो नाभावो विद्यते सतः।
उभयोरपि दृष्टोऽन्तस्त्वनयोस्तत्त्वदर्शिभिः।।
अर्थ असत्य की तो सत्ता नहीं है और सत् का अभाव नहीं है। इस प्रकार इन दोनों का ही तत्त्व तत्वज्ञानी पुरूषों द्वारा देखा गया है। व्याख्याशरीर जन्म से पहले भी नहीं था मरने के बाद भी नहीं रहेगा और वर्तमान में भी क्षण क्षण अभाव हो रहा है। संसार को हम एक ही बार देख सकते हैं। दूसरी बार नहीं कारण कि संसार प्रतिक्षण परिवर्तनशील है। एक क्षण पहले वस्तु जैसी थी दूसरे क्षण वह वैसी नहीं रहती। जैसे थियेटर के परदे पर दृश्य स्थिर दिखता है पर वास्तव में उसमें प्रति क्षण परिवर्तन होता रहता है। मशीन पर फिल्म तेजी से घूमने के कारण वह परिवर्तन इतनी तेजी से होता है कि उसे हमारी आँखें पकड़ नहीं पाती।   वास्तव में हमें संसार एक बार भी नहीं दिखता। वर्तमान रूकता ही नहीं जब तक देख कर पलक झपकाते हैं इतने में वह वक्त भूतकाल बन जाता है। यही असत् है। इसी तरह इस संसार का भी भाव नहीं अभाव है यह भी असत् है। यह शरीर तो प्रकृति का छोटा सा नमूना है। ज्ञान व विज्ञान को जानने वाले तत्वज्ञानी पुरूषों ने दो चीजों का अनुभव किया एक तो जो यह शरीर व संसार नजर आ रहा है यह परिवर्तनशील है अर्थात् असत् है। दूसरा यह अनुभव किया कि पूरे ब्रह्म में परम के सिवाय दूसरी कोई भी चीज सत् नहीं है। कण-कण में सत् का अनुभव तत्वज्ञानियों ने किया है।
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अपने आप को गीता परमरहस्यम् की गहन शिक्षाओं में डुबो दें, यह एक कालातीत मार्गदर्शक है जो आत्म-खोज और आंतरिक विकास का मार्ग प्रशस्त करता है।

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