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यं हि न व्यथयन्त्येते पुरुषं पुरुषर्षभ।
समदुःखसुखं धीरं सोऽमृतत्वाय कल्पते।।
अर्थ हे पुरूष श्रेष्ठ अर्जुन ! जिस बुद्धिमान मनुष्य को ये इन्द्रियाँ विचलित नहीं करती, वह सुख दुःख में सम रहने वाला अमर है। व्याख्याहे पुरूष श्रेष्ठ अर्जुन! अब भगवान अर्जुन को पुरूषों में श्रेष्ठ कह रहे हैं। गीता में जितने भी श्लोक है उनमें श्री कृष्ण ने हर श्लोक को बताने से पहले कभी पार्थ कहा कभी कौंतय कहा कभी पृथ्या पुत्र कहा। किसी श्लोक में महाबाहो तो किसी में कुन्ती पुत्र, श्री कृष्ण से बड़ा साइक्लॉजिस्ट इस धरती पर पैदा नहीं हुआ। श्री कृष्ण हर बात को बोलने से पहले अर्जुन को ऐसे नाम से बोलते हैं जिससे अर्जुन का ध्यान कृष्ण की बातों पर आ जाए। सब मन के विचारों का खेल है।  भगवान क्या कर रहे हैं विचार करें एक तो हर बार अलग नाम से पुकार कर अर्जुन का ध्यान अपनी ओर खींचना, दूसरा नाम भी ऐसा लेना है कि अर्जुन के मन में वह भाव प्रकट कर सके। भाव प्रकट होने से ही शब्द समझ आते हैं। आपने बहुत प्रोग्राम ऐसे देखें होंगे जो स्टेज से जुड़े होते हैं। जैसे सेमिनार, रैली, सत्संग इनमें स्टेज से जो वक्ता बोलता है वह अगर बार-बार ताली बजवा रहा है तो उसकी बात दर्शकों को समझ में आयेगी। अगर बिना ताली के प्रोग्राम चल रहा है तो दर्शकों के विचार कहीं और ही घूम रहे हैं। ताली बजाने का मतलब ही यह है कि व्यक्ति ताली बजते ही वर्तमान पल में आ जाता है। ऐसे ही भगवान ने अर्जुन को यहां पुरूष श्रेष्ठ कहा है तो अर्जुन के भाव श्रेष्ठ पुरूषों वाले हो गये।   आपने पहले अध्याय में पढ़ा कि अर्जुन के विचार अच्छे हैं जैसे धृतराष्ट्र के विचार अलग थे वह कहता है मेरे व पाण्डु पुत्रों में, अलग मानता है और अर्जुन को आपने देखा ‘कुरूवंशियों को देख’ इतना कहते ही सब अपने कुलवासी नजर आये लेकिन धृतराष्ट्र को कुरूवंशियों का विचार नहीं आया। दूसरी बात यह है कि अर्जुन के भाव अच्छे हैं इनको मारने से मुझको पाप तो नहीं लग जायेगा। कहीं पाप लग गया तो मैं कल्याण को प्राप्त कैसे होऊंगा। यह कल्याण का विचार करना ही मनुष्यों में उनकी श्रेष्ठता है।   इसलिए भगवान यहां अर्जुन को श्रेष्ठ पुरूष के नाम से पुकारते हैं आगे कहते हैं - बुद्धिमान मनुष्य को ये इन्द्रियाँ विचलित नहीं करती अर्थात् जिसको विचलित करती है वह बुद्धिमान नहीं वह तो मंदबुद्धि है। वह मन के चलाये चल रहा है। मन के विचारों में दौड़ेगा तो इन्द्रियाँ विचलित करेगी। जिसको विचलित नहीं करती उसका मन स्थिर है और जिसका मन स्थिर है वह बुद्धिमान मनुष्य है वह सुख-दुःख में सम (स्थिर) रहने वाला अमर है।   जो बुद्धिमान है उस ज्ञानी को सुख दुख विचलित नहीं करते ज्ञानी को पता है सुख दुख तो सर्दी गर्मी की तरह आने जाने वाले हैं। बुद्धिमान मनुष्य सुख आये तो भी सम रहते है। दुख आने पर भी विचलित नहीं होते स्थिर ही रहते हैं। सुख-दुःख में सम वही मनुष्य रह सकता है जिसको संसार की किसी चीज से मोह ना रहे और जिसको मोह नहीं रहता वह कोई भी कार्य करे। सर्वहित के लिए ही करेगा और जो अपना जीवन प्रभु के चरणों में समर्पित करके कार्य सर्वहित के भले के लिए करता है। वह सुख-दुःख में सम रहने वाला व्यक्ति अमर है।
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अपने आप को गीता परमरहस्यम् की गहन शिक्षाओं में डुबो दें, यह एक कालातीत मार्गदर्शक है जो आत्म-खोज और आंतरिक विकास का मार्ग प्रशस्त करता है।

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