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न त्वेवाहं जातु नासं न त्वं नेमे जनाधिपाः।
न चैव न भविष्यामः सर्वे वयमतः परम्।।
अर्थ किसी समय में मैं नहीं था, तुम नहीं थे और ये राजा लोग भी नहीं थे। भविष्य में भी हम नहीं रहेंगे। सभी मैं, तू और राजा लोग परम ही हैं। व्याख्याभगवान अर्जुन को कह रहे हैं कि हम सब शरीर नहीं आत्मा हैं और यह संसार, तेरा मेरा, सुख-दुःख तो इस शरीर में जो जीव बैठा है उसका स्वप्न है। आत्मा पहले भी थी अब भी है और हमेशा रहेगी। यह मनुष्य के शरीर में बैठा जीव जो सुन रहा है, देख रहा है उसको माया से परे परम नजर नहीं आ रहा जो सनातन है।   भगवान कह रहे हैं किसी भी समय में मैं तू और सब राजा लोग नहीं थे। भविष्य में भी नहीं होंगे, तो आप कहेगे हम कौन है। इसका उत्तर है कि हम सब आत्मा हैं। आपके भीतर भी वही आत्मा है जो मुझमें है और संसार के सभी जीवों में वही आत्मा है। आत्मा अलग-अलग नहीं है। आत्मा सबकी एक है। तब भगवान कह रहे हैं तू, मैं, राजालोग परम ही हैं। प्रकृति माया से हम अपनी आत्मा स्वरूप नहीं पहचान पाते। अब आप कहोगे कि सबकी आत्मा एक है तो सब अलग अलग क्यों सोचते हैं। एक दूजे से लड़ क्यों रहे है। यही अज्ञान है। हम सबकी आत्मा एक है और इस एक आत्मा के जीव अलग-अलग कहे गये हैं। जीव संसार माया की आसक्तियों में पड़कर अपने असली स्वरूप आत्मा को भूलकर इस माया में ही जन्मते मरते रहते हैं। इस जीव को अलग-अलग ग्रंथों में अलग-अलग शब्दों से समझाया गया है। किसी संत ने इसको आत्मा कहा, किसी ने रूह, सूक्ष्म शरीर, जीव आत्मा, चित, मन, जीव इन सब नामों से ज्ञान को अलग अलग भाषा में समझाया गया है। जब यह जीव संसार की सभी इच्छाएं विलीन कर लेता है तब इस जीव को अपना असली रूप आत्मा नजर आता है।   परम रहस्य:- कृष्ण कहते हैं अर्जुन को कि जिन्हें तू देख रहा है वे पहले भी नहीं थे अब भी नहीं है और आगे भी नहीं रहेंगे, अर्जुन को जो सामने दिखाई पड़ रहे हैं युद्ध में उनकी चिंता हैं कि ये मर जाएंगे अर्जुन रूप की बात कर रहे हैं, कृष्ण अरूप की बात कर रहे हैं, अर्जुन उसकी बात कर रहे हैं जो दिखाई पड़ रहे हैं जो आंखों और हाथ की पकड़ में आता है, कृष्ण उसकी बात कर रहे हैं जो दिखाई नहीं पड़ता, जो हाथ और आंखों की पकड़ में नहीं आता, कृष्ण जो कह रहे हैं आप उसे जान सके वो बड़ी सौभाग्य की बात है। जो दिखाई पड़ता है, वह सदा नहीं था, सदा तो बहुत बड़ा शब्द है जो दिखाई पड़ता है वह एक पल पहले भी नहीं था, आप किसी के चेहरे को क्षण भर पहले देखते हो तो वही चेहरा क्षण भर बाद में नहीं है, क्षण भर पहले देखा क्षण भर बाद में बहुत कुछ मर गया उस शरीर में, जो हमें दिखाई पड़ता वह वही नहीं है जो है, उतनी देर में भी वह बदल जाता है जब मैं आंख से देखता हूँ आपके चेहरे को तो आपसे किरण मुझ तक आती है, तब तक भी समय गुजरा, आप वही नहीं रहे, इस बीच सब कुछ बदल गया यह संसार की आकृति क्षण में बदल जाती है।   जैसे आप नदी में नहाने के लिए नदी में उतरते हो तब एक नदी में एक बार उतरना बहुत मुश्किल है, जब पैर आप नदी के ऊपर के पानी पर रखते हो इतने क्षण में नीचे का पानी निकल जाता है, और जब आप नीचे के पानी तक पहुंचते हो इतने में ऊपर का पानी निकल जाता है, ऐसे ही इस संसार की आकृति तो नदी की तरह भाग रही है, लेकिन आकृति हमें स्थिर दिखाई पड़ती है, हमें लगता है जिसको कल देखा यह वही है परन्तु हर पल यह सम्पूर्ण संसार बदल रहा है।   कृष्ण अर्जुन को कह रहे हैं जो मरने वाला है, वह तेरे बचाने से भी नहीं बचेगा और जो नहीं मरने वाला है वह तेरे मारने से भी नहीं मरने वाला, यह रूप और अरूप के बीच जो संसार का फैलाव है अगर हम इसे रूप की तरफ से पकड़ें तो चिंता व्यर्थ है, क्योंकि जो मिट ही रहा है मिट ही जाएगा जैसे पानी पर खिंची गई लकीर खिंच भी नहीं पाती और मिटना शुरू हो जाती है और हम अरूप का सोचे तो वह कभी मिट ही नहीं सकता, अर्जुन रूप की बात कर रहे हैं और कृष्ण अरूप की बात कर रहे हैं।   जिसने लहरों को ही सागर समझा वह चिंतित हो सकता है कि क्या होगा लहरें मिट रही हैं, लेकिन जो सागर को जानता है, वह कहेगा लहरों को बनने दो, मिटने दो, लहरों में जो पानी है, जो सागर है वह पहले भी था जब लहर नहीं थी और बाद में भी रहेगा जब लहर नहीं होगी।   कृष्ण कह रहे हैं कि जो प्रकट हुआ है वह तू नहीं है, वह जो अप्रकट रह गया वही तू है और जो अप्रकट हैं वह बहुत बड़ा है, जो प्रकट हुआ है ऐसे दृश्य बहुत बार प्रकट होते रहते हैं, जो अप्रकट है तुझ में, मुझ में और इन सब राजाओं में वह परम है, वह सागर है और सागर के बिना लहरें नहीं बनती लहर बनी है क्षण में मिट जाएगी। लहर नहीं हो सकती सागर के बिना, सागर हो सकता है लहर के बिना, ऐसे ही संसार नहीं हो सकता परम के बिना परम हो सकता है संसार के बिना। कृष्ण कह रहे हैं यह मैं, तू और राजा लोग तो सागर में लहरों की तरह है और इन सब लहरों में सागर एक ही है यानि हम सब सागर ही हैं अर्थात् हम सब परम ही हैं।
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अपने आप को गीता परमरहस्यम् की गहन शिक्षाओं में डुबो दें, यह एक कालातीत मार्गदर्शक है जो आत्म-खोज और आंतरिक विकास का मार्ग प्रशस्त करता है।

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