तमुवाच हृषीकेशः प्रहसन्निव भारत।
सेनयोरुभयोर्मध्ये विषीदन्तमिदं वचः।।
सेनयोरुभयोर्मध्ये विषीदन्तमिदं वचः।।
अर्थ हे धृतराष्ट्र। दोनों सेनाओं के मध्य भाग में विषाद करते हुए उस अर्जुन के प्रति हँसते हुए से भगवान हृषीकेश ने यह आगे कहे जाने वाले वचन बोले। व्याख्याअंतर्यामी श्री कृष्ण महाराज ने दोनों सेनाओं के बीच जो खाली जगह थी वहाँ पर रथ को खड़ा कर रखा था।
उस शोक करते हुए अर्जुन को हंसते हुए यह वचन बोले - भगवान को अर्जुन की बातें सुनकर हंसी आ रही थी। जो कि पहले तो अर्जुन कहता है कि मैं आपका शिष्य हूँ, मैं आपकी शरण में हूँ मुझको ज्ञान दीजिए। फिर कहता है मैं युद्ध नहीं करूंगा और चुप होकर बैठ गया। इसलिए श्री कृष्ण को अर्जुन की दशा देखकर हंसी आ गई तब भगवान हंसते हुए
यह वचन बोले - अध्याय 2 के 11 नं. श्लोक से लेकर भगवान ने गीता के आखिरी अध्याय तक सम्पूर्ण बृह्म व मुक्ति तक का ज्ञान बड़े ही अच्छे तरीके से समझाया है। गीता शास्त्र को पढ़कर अपने जीवन में कोई व्यक्ति इस ज्ञान का आचरण कर ले तो वह व्यक्ति जीते जी मोक्ष यानी प्रभु को प्राप्त हो जाता है।
एक-एक शब्द का मतलब समझते हुए आप गीता जी का अध्ययन करते रहें आपको ईश्वर का आत्मज्ञान अवश्य प्राप्त होगा।
गीता जी के शब्दों में वह शक्ति है कि कोई व्यक्ति 21 दिन गीता का अध्ययन स्थिर व शांत होकर करता है तो उसको आत्मसाक्षात्कार हो जाता है।
गीता से बड़ा परम रहस्य आपको किसी भी ग्रंथ में नहीं मिल सकता है एक ही शास्त्र में सम्पूर्ण ज्ञान मिलना मानव जाति के लिए सौभाग्य की बात है।