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सञ्जय उवाच

तं तथा कृपयाऽविष्टमश्रुपूर्णाकुलेक्षणम्।
विषीदन्तमिदं वाक्यमुवाच मधुसूदनः।।
अर्थ संजय बोले - वैसी कायरता से व्याप्त हुए उन अर्जुन के प्रति जो कि विषाद कर रहे हैं और आँसुओं के कारण जिनके नेत्रों की देखने की शक्ति अवरूद्ध हो रही है, भगवान मधुसूदन यह आगे कहे जाने वाले वचन बोले। व्याख्यापहले अध्याय के श्लोक नं. 21, 22, 23 में अर्जुन कहते हैं मेरे रथ को दोनों सेनाओं के बीच में खड़ा कीजिए मैं देख तो लूँ मुझको किन-किन के साथ दो-दो हाथ होना है। अर्थात् मेरे जैसे शूरवीर के साथ कौन-कौन से योद्धा साहस करके लड़ने आये हैं। अपनी मौत सामने देखते हुए भी मेरे साथ उनकी लड़ने की हिम्मत कैसे हुई। इस प्रकार अर्जुन में उत्साह था वीरता थी उसी अर्जुन का अपने सामने कुटुम्ब को देखकर मुख सूख रहा है। शरीर कांप रहा है रोंगटे खड़े हो रहे हैं। त्वचा जल रही है। धनुष तीर छूट गये हैं। अर्जुन जैसे शूरवीर के भीतर भी कुटुम्ब मोह छा गया और नेत्रों से आंसू भर आये आंसू भी इतने ज्यादा भर आये कि नेत्रों से पूरी तरह देख भी नहीं सकता और मोह में पड़कर दुखी मन से रथ के मध्यम भाग में बैठ गए। फिर करूणा से व्याप्त अर्जुन को भगवान ने यह वचन बोले।
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अपने आप को गीता परमरहस्यम् की गहन शिक्षाओं में डुबो दें, यह एक कालातीत मार्गदर्शक है जो आत्म-खोज और आंतरिक विकास का मार्ग प्रशस्त करता है।

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