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असत्यमप्रतिष्ठं ते जगदाहुरनीश्वरम्।
अपरस्परसम्भूतं किमन्यत्कामहैतुकम्।।

एतां दृष्टिमवष्टभ्य नष्टात्मानोऽल्पबुद्धयः।
प्रभवन्त्युग्रकर्माणः क्षयाय जगतोऽहिताः।।
अर्थ वे कहा करते हैं कि संसार असत्य, बिना मर्यादा के और बिना ईश्वर के अपने-आप केवल स्त्री पुरूष के संयोग से पैदा हुआ है। इसलिए काम ही इसका कारण है ? और कारण हो ही नहीं सकता। इस पूर्वोक्त नास्तिक दृष्टि का आश्रय लेने वाले जो मनुष्य अपने नित्य स्वरूप को नहीं मानते, जिनकी बुद्धि तुच्छ है जो उग्र कर्म करने वाले और संसार के शत्रु हैं, उन मनुष्यों के सामर्थ्य का उपयोग नाश करने के लिए ही होता है। व्याख्यागीता अध्याय 16 का श्लोक 8-9 असुर स्वभाव वाले पुरूष कहा करते है कि यह संसार असत्य है। अर्थात् जितने भी यज्ञ, दान, तप, ध्यान, समाधि, स्वअध्ययन किए जाते हैं उनको वह सत्य नहीं मानते, उनको तो वह एक बहकावा मानते है।
वह कहा करते है यह संसार बिना ईश्वर के अपने आप केवल स्त्री-पुरूष के संयोग से पैदा हुआ है। इस संसार के सभी प्राणी काम से उत्पन्न हुए है और कोई दूसरा कारण नहीं। इस प्रकार वह नास्तिक दृष्टि का आश्रय लेने वाले अर्थात् वह कहते हैं ना कोई परमात्मा है, ना पाप-पुण्य है, ना परलोक है, ऐसी नास्तिक दृष्टि का आश्रय लेने वाले असुरी मनुष्य होते हैं। उनके विचार होते है कि कोई आत्मा चेतना नहीं होती। बस शरीर को ही मैं कहते हैं बस खाओ पिओ और मोज करो आगे क्या होगा इस बात का उनको विवेक नहीं।
परमात्मा, स्वर्ग, नर्क का भय ना होने से यह दूसरों की हत्या आदि बड़े भयानक पाप कर्म करते है। इन पापी लोगों को दूसरे के नुकसान करने से सुख मिलता है। ऐसे मनुष्य पूरे जगत के दुश्मन हैं।
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अपने आप को गीता परमरहस्यम् की गहन शिक्षाओं में डुबो दें, यह एक कालातीत मार्गदर्शक है जो आत्म-खोज और आंतरिक विकास का मार्ग प्रशस्त करता है।

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