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प्रवृत्तिं च निवृत्तिं च जना न विदुरासुराः।
न शौचं नापि चाचारो न सत्यं तेषु विद्यते।।
अर्थ असुरी प्रकृति वाले मनुष्य किस में प्रवृत होना चाहिए और किससे निवृत होना चाहिए, इसको नहीं जानते और उनमें न तो शुद्धि न श्रेष्ठ आचरण तथा न सत्य-पालन ही होता है। व्याख्या गीता अध्याय 16 का श्लोक 7 भगवान कहते है असुरी प्रवृति वाले मनुष्य किसमें प्रवृत होना है और किसमें निवृत नहीं होना चाहिए इसको नहीं जानते अर्थात् क्या करना चाहिए और क्या नहीं करना चाहिए। इसको नहीं जान सकते, असुरियों की निष्ठा तो लौकिक भी नहीं होती, अलौकिक तो दूर की बात रही, इनकी निष्ठा नर्क में ले जाने वाली होती है। भगवान कहते है इनमें सोचने कि शुद्ध बुद्धि, श्रेष्ठ आचरण (अच्छा व्यवहार) सत्य पालन कुछ भी नहीं होता है।
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अपने आप को गीता परमरहस्यम् की गहन शिक्षाओं में डुबो दें, यह एक कालातीत मार्गदर्शक है जो आत्म-खोज और आंतरिक विकास का मार्ग प्रशस्त करता है।

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