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दैवी सम्पद्विमोक्षाय निबन्धायासुरी मता।
मा शुचः सम्पदं दैवीमभिजातोऽसि पाण्डव।।

द्वौ भूतसर्गौ लोकेऽस्मिन् दैव आसुर एव च।
दैवो विस्तरशः प्रोक्त आसुरं पार्थ मे श्रृणु।।
अर्थ दैवी सम्पदा मुक्ति के लिए और असुरी सम्पदा बन्धन के लिए मानी गयी हैं। हे पाण्डव ! तुम दैवी सम्पदा को प्राप्त हुए हो। इसलिए तुम शोक मत करो। इस लोक में दो तरह के ही प्राणियों की सृष्टि है। दैवी और असुरी। दैवी को तो मैंने विस्तार से कह दिया, अब हे पार्थ तुम मुझसे असुरी को विस्तार से सुनो। व्याख्यागीता अध्याय 16 का श्लोक 5-6 1.    दैवी सम्पदा मुक्ति के लिए।
2.    असुरी सम्पदा बन्धन (जन्म-मरण) के लिए मानी गई है।
भगवान कहते है हे पाण्डव तुम दैवी सम्पदा को प्राप्त हुए हो, इसलिए तुम शोक चिंता मत करो।
जीवात्मा के एक तरफ परमात्मा है और एक तरफ संसार है।
जब जीव परमात्मा की ओर चलता है तब उसमें दैवी सम्पदा आती है और जब संसार की ओर चलता है तब उसमें असुरी सम्पदा आती है। अर्जुन बार-बार एक ही बात कह रहे थे कि कुछ ऐसा कहिए जिससे मेरा निश्चित कल्याण (मुक्ति) हो जाए, तब भगवान ने कहा तुम शोक चिन्ता ना करो क्योंकि तुम दैवी सम्पदा को प्राप्त हुए हो इस लोक पर दो तरह के प्राणियों की ही सम्पदा है ‘‘दैवी और असुरी’’ दैवी सम्पदा के स्वभाव वालों के लिए मैंने तुझे इससे पहले कह दिया (एक, दो, तीन श्लोक में) हे पार्थ अब तुम मुझसे असुरी सम्पदा को विस्तार पूर्वक सुनो।
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अपने आप को गीता परमरहस्यम् की गहन शिक्षाओं में डुबो दें, यह एक कालातीत मार्गदर्शक है जो आत्म-खोज और आंतरिक विकास का मार्ग प्रशस्त करता है।

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