तेजः क्षमा धृतिः शौचमद्रोहो नातिमानिता।
भवन्ति सम्पदं दैवीमभिजातस्य भारत।।
भवन्ति सम्पदं दैवीमभिजातस्य भारत।।
अर्थ तेज, क्षमा, धैर्य, चिन्तन में शुद्धि, वैरभाव का न होना और मान को न चाहना, हे भरतवंशी अर्जुन ! ये सभी देवी सम्पदा को प्राप्त हुए मनुष्य के लक्षण हैं। व्याख्यागीता अध्याय 16 का श्लोक 3
तेज: योगी के सामने आते ही बुरे कर्म करने वाले लज्जित होते है योगी के तेज से दुराचार करने वाले सदाचार करने लग जाते है, कोई भी अच्छा कार्य करने वाला अच्छा कार्य कर रहा हो, उसको देख कर सभी अच्छाई के कार्य करने लग जाए वह उस योगी का तेज होता है।
क्षमा: क्षमा मांगना या किसी को क्षमा कर देना दोनों ही परम गुण है।
धृति: विचारों में शुद्धि और मान (वाहवाही) को ना चाहना। धैर्य को धारण करना ही धृति है। तीनों श्लोकों में जो ज्ञान बताया इसको भगवान कहते हैं कि हे अर्जुन यह सभी देवी सम्पदा को प्राप्त हुए मनुष्य के लक्षण है। परम प्राप्ति का उद्देश्य होने पर, यह देवी-सम्पदा के लक्षण साधक में स्वाभाविक ही आने लग जाते है। अब तक इस अध्याय में एक परमात्मा का ही उद्देश्य रखने वालों की देवी-सम्पदा बताई, परन्तु सांसारिक भोग भोगना और धन ईक्ट्ठा करना ही जिनका उद्देश्य है। उन लोगों की कौन सी सम्पदा है। इस बात को आगे के श्लोक में बताते हैं।
क्षमा: क्षमा मांगना या किसी को क्षमा कर देना दोनों ही परम गुण है।
धृति: विचारों में शुद्धि और मान (वाहवाही) को ना चाहना। धैर्य को धारण करना ही धृति है। तीनों श्लोकों में जो ज्ञान बताया इसको भगवान कहते हैं कि हे अर्जुन यह सभी देवी सम्पदा को प्राप्त हुए मनुष्य के लक्षण है। परम प्राप्ति का उद्देश्य होने पर, यह देवी-सम्पदा के लक्षण साधक में स्वाभाविक ही आने लग जाते है। अब तक इस अध्याय में एक परमात्मा का ही उद्देश्य रखने वालों की देवी-सम्पदा बताई, परन्तु सांसारिक भोग भोगना और धन ईक्ट्ठा करना ही जिनका उद्देश्य है। उन लोगों की कौन सी सम्पदा है। इस बात को आगे के श्लोक में बताते हैं।